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कोरोना को दूर भगाना है
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ख़ुशियों का संसार बसाना है
कोरोना को दूर भगाना है ।
    आयी है सर पर विपदा भारी
    दहशत में है यह दुनिया सारी
    काल बना सर पर मँडराता है
    यह जीवाणु बहुत धमकाता है
अपने ही आज पराए दिखते
दूरी में ही हम जीना सीखते
संयम से ही काम चलाना है
कोरोना को दूर भगाना है।
      घर पर रहने का अवसर आया
      अपनेपन का रिश्ता समझाया
      बाहर – भीतर मत करना कुछ दिन
      गप्पों – क़िस्सों में रम जा कुछ दिन
देह नहीं कोई यह पाएगा
चेन नहीं इसका बन पाएगा
मानव को यह जंग जिताना है
कोरोना को दूर भगाना है।
       बच्चे – बूढ़े इक हो जाएँगे
       अनुशासन की बात बताएँगे
       फिर न महामारी आने पाए
       ऐसी ग़लती क्यूँकर दुहराए
चिंता में मत करना प्राण विकल
चेतोगे आज तभी होगा कल
जनजीवन ख़ुशहाल बनाना है
कोरोना को दूर भगाना है।
   

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चलने को तो चल रही है ज़िंदगी
बेसबब सी टल रही है ज़िंदगी ।

बुझ गये उम्मीद के दीपक सभी
तीरगी में ही पल रही है ज़िंदगी ।

ऐ खुदा ,रहमो इनायत पे तेरी
ये मुकम्मल फल रही है ज़िंदगी ।

हमसफ़र आ थाम ले दामन मेरा
बिन तेरे अब खल रही है ज़िंदगी ।

जो लहक तूने लगायी प्यार की
देख उसमें जल रही है ज़िंदगी ।

जैसे कोई बर्फ़ का सिल्ली हो ये
अब हरिक पल गल रही है ज़िंदगी ।

वैसे तो चार दिन की है मगर
आजकल में टल रही है ज़िंदगी ।

काश ,आए मेरे गुलशन में फिज़ा
चाह में ही ढल रही है ज़िंदगी । 

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आदमखोर
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उन दिनों जब नील नदी के किनारे
मिस्र की सभ्यता उजड़ रही थी
भूख से बिलबिलाता मनुष्य
बीहड़ वन से गुजरते हुए 
मनुष्य का ही शिकार कर
अपनी क्षुद्धा की तृप्ति करता था।
आदमखोर अब भी हैं
उनकी बस नीयत बदल गयी है
खाने को पर्याप्त चीज़ें हैं अब
इसलिए वे मात्र उन माँसल
अंगों में दांत गड़ा कर
और पंजों से नोच
क्षत - विक्षत छोड़ देते हैं क्योंकि
वे आदमखोर नहीं हैं। 

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बसंत
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नव कालिका ,नव पल्लव
नवजीवन का आह्वान
कानन कुंजन में कलरव
गूँजे नवल विहान ।
सरसों फूली,  झूली अमुआ 
टेसू अमलतास लहराए
महमह मदमाती महुआ
दावानल सा भरमाए ।
जड़ – चेतन में तरुणाई
प्रकृति संग आई
देख साँझ की अरुणाई
पवन चली बौराई ।
रंग बसंती , रूप बसंती
झूमकर आया वसंत
मन गिरह खोल सुमति
भर गया ऋतु महंत ।
समाहित कर अक्षय उल्लास
चलीं  नदियां ताल सरवर
बसंत की आभा औ विभास
धरा पर गगन पर  मनहर ।

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बड़ी करिश्माई है अहसासे मुहब्बत
जीवन नहीं कभी बंज़र होता है।

संग मौसम उतर जाओ फ़िज़ाओं में
तुमसे ही शादाब मेरा शज़र होता है।

रात कट जाती है आँखों में अक्सर
उधर भी क्या यही मंज़र होता है।

अजाबे इश्क़ भी अज़ीज़ होता है ,पास
जब तुम्हारी बांहों का पिंजर होता है।

दिल की बात आती नहीं जुबां पे
दिल पे चलता तब खंज़र होता है। 

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हँसना सीखा दिया रोना सीखा दिया
प्यार ने तेरे ख्वाबों में जीना सीखा दिया।
बाद मुद्दत के ऐसा कोई शख्स मिला
पत्थर को पिघलना सीखा दिया।
गमो खुशी में तलाशते हैं वही कांधा जिसने
करवटों में शब बीताना सीखा दिया।
दिलाज़ार की गुस्ताखी कैसे भूले कोई
आग में जो बेखौफ़ कूदना सीखा दिया।
कोरी थी जीवन की किताब यह
प्यार ने उसके रंग भरना सीखा दिया।

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बना दो या बिगाड़ दो आशियाँ दिल का
हाथ में ये तेरे है ,नहीं काम कुदरत का।

तोड़ दो यह ख़ामोशी ,खफ़गी भी अब
सर ले लिया अपने, इल्ज़ाम मुहब्बत का।

जी करता है बिखर जाऊं खुशबू बन
तोड़ कर बंदिशें तेरी यादों के गिरफ्त का।

बज़्मे जहान में कोई और नहीं  जंचता
कुर्बत में तेरे जवाब है हर तोहमत का।

उम्मीदों का दीया जलता है मुसलसल
कभी तो बरसेगा मेघ उसकी रहमत का।...copyright k.v.  

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