(झारखण्ड स्थापना दिवस पर एक कविता )
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अबुआ राज...
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जल - जंगल - ज़मीन से जुड़ा
एक प्रदेश अब भी है ऐसा
न्यूनतम जहाँ बदलाव आया
न्यूनतम मुख्यधारा से मिला।
भूगर्भ में दबा अकूत खनिज
महुआ और कंजर से वन भरा
बाँस के लुभावने पेड़ों से
अनगिन का है रोज़गार जुड़ा।
फसलें लहरातीं हैं झूम झूम कर
पसीने से जब तन नहाता
कातर नैन नभ को तकता
बारिशों में है जीवन पलता।
जलप्रपातों की कलकल निनाद
हवाओं संग राग मिलाती
दूर का बटोही श्रांत - क्लांत
अपनी शिकन यहाँ मिटाता।
माँदर - ढोल की थाप पर
थिरकते थाम हाथों में हाथ
चिर - प्रतिक्षित रहता करमा - सरहुल
पत्तों का सिरमौर पहन पुष्पहार।
अद्भुत छटा अनमोल उन्माद
देख चहकते क्षितिज पर पाखी
अपनी कला - संस्कृति निराली
हम सा कोई ना दूजा।
सब कुछ तो है यहाँ !
तभी साधिकार स्वराज चाहा
पंद्रह नवंबर जब - जब आता
वर्षगांठ पर वादों - इरादों का
भरपूर सौगातें लाता।
एक काँटा उर में चुभता
सरकार के सभी समीकरणों का
आखिर क्यों न नतीजा फलता?
बेगारी ,लाचारी ,भ्रष्ट आचारी का
करके समूल नाश
दुवृत्तियों का तोड़ कर पाश
बिरसा के बलिदान का क़र्ज़
मुट्ठी की ताक़त में पहचानें।
है पुण्य माटी पर हमको नाज
आओ बनाएँ प्राची के सूर्य सा
अबुआ दिशोम ,अबुआ राज।
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अबुआ राज...
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जल - जंगल - ज़मीन से जुड़ा
एक प्रदेश अब भी है ऐसा
न्यूनतम जहाँ बदलाव आया
न्यूनतम मुख्यधारा से मिला।
भूगर्भ में दबा अकूत खनिज
महुआ और कंजर से वन भरा
बाँस के लुभावने पेड़ों से
अनगिन का है रोज़गार जुड़ा।
फसलें लहरातीं हैं झूम झूम कर
पसीने से जब तन नहाता
कातर नैन नभ को तकता
बारिशों में है जीवन पलता।
जलप्रपातों की कलकल निनाद
हवाओं संग राग मिलाती
दूर का बटोही श्रांत - क्लांत
अपनी शिकन यहाँ मिटाता।
माँदर - ढोल की थाप पर
थिरकते थाम हाथों में हाथ
चिर - प्रतिक्षित रहता करमा - सरहुल
पत्तों का सिरमौर पहन पुष्पहार।
अद्भुत छटा अनमोल उन्माद
देख चहकते क्षितिज पर पाखी
अपनी कला - संस्कृति निराली
हम सा कोई ना दूजा।
सब कुछ तो है यहाँ !
तभी साधिकार स्वराज चाहा
पंद्रह नवंबर जब - जब आता
वर्षगांठ पर वादों - इरादों का
भरपूर सौगातें लाता।
एक काँटा उर में चुभता
सरकार के सभी समीकरणों का
आखिर क्यों न नतीजा फलता?
बेगारी ,लाचारी ,भ्रष्ट आचारी का
करके समूल नाश
दुवृत्तियों का तोड़ कर पाश
बिरसा के बलिदान का क़र्ज़
मुट्ठी की ताक़त में पहचानें।
है पुण्य माटी पर हमको नाज
आओ बनाएँ प्राची के सूर्य सा
अबुआ दिशोम ,अबुआ राज।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (16-11-2013) "जीवन नहीं मरा करता है" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1431” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
सुन्दर -
शुभकामनायें-
सुन्दर प्रस्तुति
नई पोस्ट मन्दिर या विकास ?
नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
हमसा कोई ना दूजा,सब कुछ है यहां
अबुआ दिशोम,अबुआ राज
झारखंड के सम्पूर्ण दर्शन के लिये,साभार आभार
सुंदर सच्ची प्रस्तुति।
सुन्दर रचना
सुंदर प्रस्तुति...
सुंदर प्रस्तुति झारखंड को दर्शाती , बधाई आपको ।