"अहसास" (कविता विकास)
>> Thursday, 15 December 2011 –
अहसास
झुक रहा गगन बार -बार आलिंगन को
क्यूँ आज बेसब्र धरा ,पास है मिलने को ?
सतरंगी रवि किरण ,भाती नहीं मन को
क्यूँ आज बेचैन है मन, धवल चाँदनी को ?
ठूँठ पड़ी अमलतास थी भाग्य पर कातर
नव पल्लव क्यूँ आज, श्रृंगार को है आतुर ?
सज गए सेज पलाश के ,महक रहा मलय बयार
बार -बार क्यूँ अरमाँ करवटें लेता ,उमड़ पड़ते ज्वार?
जो तुम आ गए , ऊसर मन -प्राण खिल गया
क्यूँ निर्बाध बहता समय ,मुट्ठी में क़ैद नहीं हुआ ?
पावस फुहार से मन का कोना -कोना भीग गया
क्यूँ ढुलक गए बूंद नैनों से ,हर्ष वेग उफनता हुआ ?
वह साथ क्षणिक था ,पल दो पल का
भला क्यूँ खिड़की के कोने से, चाँद झांक रहा है ?
कहीं वह गवाह तो नहीं ,उस चिरंतन अहसास का
भला क्यूँ उसके नाम से ,हृदय धड़क रहा है ?
'मैं' से 'हम' तक का सफ़र ,बर्फीले मरू से हरियाली है
आसमां के पैबंद तभी ,आज खाली -खाली हैं ।
सितारे बिछ गए ज़मीं पर ,अमावस नहीं काली है
तन्हां नहीं अब हम ,आज हमारी दीवाली है ।
ये आपका बड़प्पन है कि आपने मुझ जैसी रचनाकार को चर्चा मंच पर जगह देकर मुझे प्रोत्साहित किया है । सदा आभारी रहूंगी । धन्यवाद ।
प्रकृति को मध्य में रख कर लिखी बेजोड रचना ...
@digamber naaswa - thank you,your comments boost me up.
कविता जी!
आशा है कि आपको अपने ब्लॉग कविता विकास का नया कलेवर "काव्य वाटिका" पसन्द आया होगा!
आप अपनी पोस्ट के साथ रचना की शीर्षक भी लगाया करें। फिर no title लिखा हुआ नहीं आयेगा।
bhala kyu unke nam se dil dhadk rha hai...gajab...bahut sundar likha hai