कसक
>> Monday 30 January 2012 –
कसक
काल के सागर - मंथन से मिलता अनुभव
बेशकीमती है रत्न - सरीखा ,प्राणोद्भव
गुज़रती है जीवन यात्रा कई पारदर्शी परतों से
कुछ खट्टे ,कुछ मीठे, पलों के तालमेल से ।
अपनी ही चौखट से बंधा ,छद्म घेरे में विचरता
कूपमंडूक ,सुख -दुःख बाँटने को कोई नही मिलता
अनगिनत सपनों के भँवर में घिरी है सांस तंत्र
कुछ से उबरते ,कुछ में डूबते , मानव है एक यंत्र ।
जीवन राग मौन है ,सुबह - शाम की आपाधापी में
विलीन है प्रस्तर प्राण ,स्वरचित ताना तानी में
रिश्तों की चटक बार -बार भेदती है हृदय द्वार को
कुछ बेबसी ,कुछ लाचारी ,कठपुतली तोड़े नही डोर को ।
यादें करवट लेतीं हैं ,जब निहायत एकाकीपन में
ढूंढ़ता है मन एक घर को,बंधा जो हो स्नेहसूत में
कसक जीवन की ,उन्हीं संजीवनी यादों से भरती है
कुछ गम ,कुछ खुशियाँ ,आँखों की नीर बन जाती है ।