"साम्य"
कहते हैं जिसको बुलबुला पानी का ,
साम्य है इसमें दर्शन जीवन का ।
उठकर गिरना ,गिरकर मिट जाना ,
क्षणभंगुर है साँस ,विराम किसने जाना ।
नयनाभिराम है आज वसंत उपवन का ,
दूर नहीं है झलक कंकाल टहनियों का ।
खिलकर मुरझाना ,मुरझा कर सूख जाना ,
यही तो है जीवन -चक्र ,अंत किसने जाना ।
प्रतीक है सफ़र क्षितिज प़र के सूरज का ,
घंटे भर का बहार ,फुलवारी खुशियों का ।
उगना चढ़ना ,चढ़ कर डूब जाना
क्षीण होती जीवन लालिमा ,अस्त किसने जाना ।
नयनाभिराम है आज वसंत उपवन का ,
दूर नहीं है झलक कंकाल टहनियों का ।
खिलकर मुरझाना ,मुरझा कर सूख जाना ,
यही तो है जीवन -चक्र ,अंत किसने जाना ।
बहुत बढ़िया ...गहन अभिव्यक्ति
न जाने फिर भी जीवन के चक्रव्यूह को समझना इतना मुश्किल क्यों ...?
@monikaji,and anil jayaniji many many thanks
जीवन का पाठ पढाती सी लगी आपकी यह कविता!
हमारे अनुभव मार्गदर्शी होते हैं ।
प्रतिबिम्ब जो परमात्मा का प्राणियों में कर सके,
फिर वह घृणा संसार में कैसे किसी से कर सके।
सर्वत्र दर्शन परम प्रभु का, फिर सहज संभाव्य है,
अथ स्नेह पथ से परम प्रभु,प्रति प्राणी में प्राप्तव्य है॥