" बदलाव "
>> Thursday, 3 November 2011 –
बदलाव
दरख्तों के साए में अब सुकून नहीं होती
परिंदों की उड़ान में ,अब संगीत नहीं होती
गाँवों की पगडंडियाँ सड़कों में तब्दील हो गयी
चबूतरों की पंचायत गुज़रे ज़माने की बात हो गई।
बदलाव की बयार ऐसी मंज़र लाई
कि आबाद नगरी अब बंज़र हो गयी
अँधेरे खौफ़ का सबब बन गए
खेत-खलिहान श्मशान का पर्याय बन गए।
शहरों की गलियों में अब शोर नहीं होता
मित्रों की संगत में वो आराम नहीं होता
अब तो हर शख्स ऐसा व्यस्त हो गया
कि बाँया अंग दाँए के लिए अनजान हो गया।
साँसों के तारातम्य में गति अवरुद्ध हो गई
पलकों का झपकना कहाँ अब तो आँखें खुली रह गईं
जीवन पथ व्यापार औ' जीवन -साथी सौदागर हो गया
रगों में बहता लाल रंग स्याह सफ़ेद हो गया ।
KAVITA VIKAS