lakshya
लक्ष्य
रवि को स्वयं की आग में
जल -जल कर ठंडक तलाशते
मैंने देखा है ।
जलधि को अपनी ही गहराई में
डूबते -उतराते तट तलाशते
मैंने देखा है ।
अम्बर को अपने ही विस्तार में
झूल -झूल कर सतह तलाशते
मैंने देखा है ।
भावनाओं के भंवर से उबरते
विचारों के मंथन से निकलते
मैंने जान लिया है
मानव मात्र निमित्त है
स्व की खोज में निहित विधि है
अपने अस्तित्व की पहचान लक्ष्य है
यही सबसे बड़ी निधि है।
कविता विकास