प्रकृति सन्देश
पत्तों पर गिरती बूँदों की थाप
एक मधुर संभास
नीर है सुख का या है संताप
होता नहीं ज़रा आभास ।
विरह अगन की पीर में
झुलस गए पात - शाख
शुष्क वायु के मौन निमंत्रण में
उड़ उठा नीरद लगा पाख ।
संजोया था महीनों से उर में
आज जी भर बरसता है
आखिर कितना रोके कोई दिल में
कभी तो सैलाब टूटता है ।
प्रबल सम्मोहन है पयोद का
धरती बड़ी प्रसारिणी है
देख बरसना पिय का
झट घूँघट हरा काढ़ी है ।
क्षणिक है बहारों की चारुता
मौसम की अंगड़ाई इच्छित है
विलग काल की करुण असमग्रता
मिलन - आह्लाद में अस्तमित है ।
अंतर्मन के तार जब जुड़ते हैं
चाहत स्पंदन बन जाती है
शब्द औ' भाषा लुप्त हो जाते हैं
मूक प्रेम मिसाल बन जाती है ।
सुंदर संदेश.....
प्यारी रचना.
कोमल भावों की अद्भुत प्रस्तुति...
बहुत ही सुन्दर अर्थपूर्ण रचना, बधाई.
अंतर्मन के तार जब जुड़ते हैं
चाहत स्पंदन बन जाती है
शब्द औ' भाषा लुप्त हो जाते हैं
मूक प्रेम मिसाल बन जाती है ।
-बेहतरीन!!