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                  ठुकरा दिया  मैंने खुदा

बंद आँखों पे समझना न नींद का कहर 
धुंधला न जाएँ सपने सो पलकें गयीं हैं ठहर ।

खो गए हो दुनिया की भीड़ में छोड़ मेरा दामन
वक़्त थम गया ,बहारें रूठ गयीं छोड़ मेरा आँगन ।

हम तो बैठे हैं पहलु में भूल हर खता को 
किस गुनाह की सजा देते हो भूल मेरी सदा को ।

जीने का बहाना मिल गया उलझनों में तलाशते रास्ता
 वरन् फूल भरी जिंदगी के छलावे से होता बस वास्ता ।

अब भी खड़े हैं हम वहाँ रास्ते जहां से हुए जुदा 
इक तेरी सूरत के वास्ते ठुकरा दिया मैंने खुदा ।

मिल जाओ गर भागती जिंदगी की जद्दोजेहद में 
अजनबी सा ठिठक जाना पहचानी सी आहटों में ।

ढेर सारी यादों को देकर भूल जाने कहते हो 
मानों सागर में मिली अश्कों को ढूंढ़ लाने कहते हो ।

आपकी बेरुखी ने मुझे आपका कायल बना दिया
 आपकी तसव्वुफ़ से रेगिस्तान में सहरा बना दिया ।

शिवनाथ कुमार  – (8 August 2012 at 07:33)  

सुंदर भावपूर्ण रचना !

अरुन अनन्त  – (9 August 2012 at 03:00)  

अब भी खड़े हैं हम वहाँ रास्ते जहां से हुए जुदा
इक तेरी सूरत के वास्ते ठुकरा दिया मैंने खुदा
वाह लाजवाब खास कर इस शे'र के लिए ज्यादा दाद......

खोरेन्द्र  – (9 August 2012 at 08:08)  

अब भी खड़े हैं हम वहाँ रास्ते जहां से हुए जुदा
इक तेरी सूरत के वास्ते ठुकरा दिया मैंने खुदा ।..bahut khub

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