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आदमखोर
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उन दिनों जब नील नदी के किनारे
मिस्र की सभ्यता उजड़ रही थी
भूख से बिलबिलाता मनुष्य
बीहड़ वन से गुजरते हुए 
मनुष्य का ही शिकार कर
अपनी क्षुद्धा की तृप्ति करता था।
आदमखोर अब भी हैं
उनकी बस नीयत बदल गयी है
खाने को पर्याप्त चीज़ें हैं अब
इसलिए वे मात्र उन माँसल
अंगों में दांत गड़ा कर
और पंजों से नोच
क्षत - विक्षत छोड़ देते हैं क्योंकि
वे आदमखोर नहीं हैं। 

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