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     मैं शबरी बन जाऊं

मेरे अंतर्मन का महाकाश 
बाँध लो मुझे अपने पाश 
झेल चुकी जग का उपहास 
जब तुम न होते आस - पास ।
शून्य की प्रतिध्वनि हुंकार भरती
मन - प्राण विछिन्न हो विवशती
निराकाश से मुरली की तान निकलती 
निस्तत्व  प्राण में चेतना उमड़ती ।
विलय कर संशय का अतिरेक 
मधुमय जीवन का कर अभिषेक 
इहलोक में ईश्वरत्व का हो भान
मर्त्यमान जीवन में अनुराग का गान । 
विश्व के अधिष्ठाता एक है पुकार
राग - रंग के बंधन से हो उद्धार 
प्रियत्व बन पथ प्रशस्त करो देव 
निस्सार जीवन का सार बनो गुरुदेव।
 उत्कर्ष अभिप्राय हो जीवन मंत्र
जिसमे न क्लेश न द्वेष का तंत्र 
चराचर के बंधन से मुक्त हो जाऊँ
तुम बन जाओ राम मैं शबरी बन जाऊँ ।

virendra sharma  – (12 August 2012 at 11:52)  

भक्ति रस की अनच से भाव बोध से समर्पण के संसिक्त रही यह रचना .... .कृपया यहाँ भी पधारें -
शनिवार, 11 अगस्त 2012
कंधों , बाजू और हाथों की तकलीफों के लिए भी है का -इरो -प्रेक्टिक

वाणी गीत  – (12 August 2012 at 20:32)  

भक्तिपूर्ण रचना !

रविकर  – (12 August 2012 at 21:55)  

Untitled
कविता विकास
काव्य वाटिका



मोहपाश में जकड़ी जकड़ी, कड़ी कड़ी हरदिन जोडूं |
बिखरी बिखरी तितर-बितर सब, एक दिशा में कित मोडूं |
रविकर मन की गहन व्यथा में, अक्श तुम्हारे क्यूँ छोडूं-
यादें तेरी दिव्य अमानत, यादों की लय न तोडूं ||

सदा  – (12 August 2012 at 23:19)  

अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्‍यक्ति में ...आभार

दिगम्बर नासवा  – (13 August 2012 at 00:15)  

भक्ति रस का सम्पूर्ण आनद लिए ... भाव मय प्रस्तुति ... लाजवाब ...

kavita vikas  – (13 August 2012 at 01:04)  

मित्रों ,आपकी टिप्पणियों से ही ताक़त मिलती है और आगे बढ़ने की प्रेरणा ....सदा ये कृपा बनाये रखें

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  – (13 August 2012 at 06:13)  

शबरी बनना है नहीं, इतना भी आसान।
रामचन्द्र के नाम से, शबरी की पहचान।।

शिवनाथ कुमार  – (13 August 2012 at 09:42)  

भक्ति रस से ओत-प्रोत सुंदर भाव, सुंदर रचना !

kavita vikas  – (13 August 2012 at 09:48)  

mayank bhai aur shivnath ji ko sadar aabhar

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