पुरुष तुम बुनियाद हो
अर्चिमान हो तुम अधिलोक का
पौरुष और पराक्रम का मिसाल हो
गौरव है सूर्य यों प्राची का
तुम भी कुल का अभिमान हो I
आदिकाल से तुम जग में
इतिहास शौर्य का रचते आये
अतुल्य बल है तुम्हारी रग में
धरोहर नित नयी गढ़ते आये I
पुरुष तुम बुनियाद सृष्टि के
पर भागीदारी मेरी कमतर क्यों
जीवन यात्रा बिन दो पहिये के
भला सोच लिया कैसे क्यों I
अजातशत्रु अवश्य गरूर इतना पर
कि बन बैठे हमारे भाग्य विधाता
नारी की अहमियत दरकिनार कर
बन गए हमारे पूर्ण निर्माता I
समय आ गया पहचानो सत्य को
बिन स्त्री अस्तित्व है अधुरा
चाँद बिन रात के सौन्दर्य को
चकोर ने भी है धिक्कारा I
तुम भावों के अपरिमित भण्डार हो
पल में गरजते पल में बरसते
सुख - शांति का आधार हो
बाधाओं को काट लेते हँसते - हँसते I
विशय नहीं हमारे प्रियत्व पर
दुःख की बदली हो या सुख की छाँव
टूट जाये जब अहम् का भूधर
झेल लेंगे हम काल का हर दाँव I
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!
अर्चिमान अधिलोक के, पौरुष के पर्याय।
छँट जाएँगी बदलिया, आयेगी सुख छाँव।।
अरे अरे कुछ नहीं है
दोपहिये का एक पहिया है
दूसरा पहिया अगर कभी
पंक्चर हो जाता है
स्कूटर रास्ते पर खड़ा हो
जाता है चलाने वाला
सिर पकड़ कर बैठ जाता है !
अच्छी प्रस्तुति
सुंदर प्रस्तुति...
aap sabhi ko mera dhaywaad ,aabhar