- मन
मन तू बड़ा बावला है
ज़माने के दस्तूर को कर दरकिनार
अपना ही आयाम रचता है
कभी आवारा बादल बन जाता है
कभी आँखों की कोर से बह जाता है ।
मन तू थोडा सरस भी है
समय की आँधियों में उड़ा नहीं है
रिश्तों की उपालंभों से मरा नहीं है
जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा नहीं है
अब भी वहाँ प्यार का अंकुर खिलता है
जो किसी को सँवार सकता है
किसी के लिए बिखर सकता है ।
मन तू कितना बेबस है
चाह कर भी हँस नहीं सकता
जज़्बातों की ज्वालामुखी में अंतर्धान
अपनी मर्ज़ी से फट भी नहीं सकता
और तो और ,मुस्कुराने से पहले
आस - पास का जायजा लेता है ।
मन तू शातिर भी कम नहीं
भीड़ भरे रास्तों में गुदगुदाता है
एकांत में टीसें मारता तड़पाता है
बार - बार उनके ख्यालों से उकसाता है
और ,जो उठा लूँ कलम लिखने को ख़त
शब्दों में स्वयं ढल जाता है ।
मेरा हमराज ,तू आज़ाद पंछी है
पिंजरबद्ध हो ही नहीं सकता
चलो ,तुममें ही विलीन हो जाऊं
हर उस मुकाम तक पहुँच जाऊं
जहाँ सशरीर न जा पाऊं ।
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