ग़ज़ल
ज़र्रा - ज़र्रा नम है
------------------------------
दिन -रात आँखों में ख्वाब होते हैं
कमाल - ए - इश्क लाजवाब होते हैं ।
अहसास बन जो रूह में उतरते हैं
सिहरनों में उनकी हम ढलते जाते हैं ।
अक्स तुम्हारी खुशबू बन महकती है
संभाले कोई, हम तो निढाल हुए जाते हैं ।
बार - बार ख़त लिख कर फाड़ डालते हैं
इश्क की परीक्षा में इसलिए उलझते जाते हैं ।
राख़ पर चल दें हम तो वो भी सुलग जाए
हुस्न ऐसा बेमिसाल कि मगरूर हुए जाते हैं।
धुआँ- धुआँ है आसमां ज़र्रा - ज़र्रा नम है
एक मदहोश है ,एक पानी -पानी हुआ जाए ।
बेतरतीब है आलम ,क्या दिन क्या रात
फिसलती ज़ुबां पर होती सिर्फ हमारी बात ।
अब तो बदनामियों से भी डर नहीं लगता है
लगता है इश्क के उस मुकाम को हमने पा लिया है ।