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                       इंतज़ार 
तुम्हें पता है  न ,इंतज़ार का आलम 
अगन - कुंड में जलने जैसा  होता है
वह  आग जिस पर पानी भी 
नहीं डाला जा सकता है  
किसी की दुआ और सहानुभूति 
कारगार नही होती है 
हर आहट पर चौंक कर पलटना 
हर ध्वनि पे उस पहचानी सी आवाज़ को तलाशना 
बिन पलकें झपकाए हर अपरिचित साए को भाँपना
बेचैनी के साथ शर्मिंदगी भरा भी होता है 
और वह बेरहम पल जो आगे बढ़ता ही नहीं 
मानो  समय नहीं ,युग बीत रहा हो 
जज़्बातों की दौड़  इस होड़ में कि
पहले मैं  निकलूं ,पहले मैं 
शिराओं की तंग  नलियों में उत्पात 
मचाने लगती है 
चेहरे की लालिमा एक अज्ञात भय से 
नीली - काली होने लगती है 
कभी सीढियां ,कभी बालकोनी ,कभी खिड़की 
शायद  ही कोई जगह हो जहाँ
पैर न खींचे चले जाते हों 
और जब इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म होती हैं 
तब मानों लावा बिखेर कर 
ज्वालामुखी शांत हो गया हो 
न कोई शब्द फूटते ,न बोली 
केवल आँखें बोलती हैं 
कुछ शिकायतें ,कुछ इनायतें 
ख़ामोशी से मुखर पड़ते हैं 
घड़ी की सुइयों की रफ़्तार तो देखो 
बिन हाँफे दौड़ती जाती हैं 
जुदाई की बेला चौखट  पर आ खड़ी होती है 
तुम्हे साथ ले जाने को 
और मुझे एक नए इंतज़ार में छोड़ जाने को ।

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