ग़ज़ल
ज़र्रा - ज़र्रा नम है
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दिन -रात आँखों में ख्वाब होते हैं
कमाल - ए - इश्क लाजवाब होते हैं ।
अहसास बन जो रूह में उतरते हैं
सिहरनों में उनकी हम ढलते जाते हैं ।
अक्स तुम्हारी खुशबू बन महकती है
संभाले कोई, हम तो निढाल हुए जाते हैं ।
बार - बार ख़त लिख कर फाड़ डालते हैं
इश्क की परीक्षा में इसलिए उलझते जाते हैं ।
राख़ पर चल दें हम तो वो भी सुलग जाए
हुस्न ऐसा बेमिसाल कि मगरूर हुए जाते हैं।
धुआँ- धुआँ है आसमां ज़र्रा - ज़र्रा नम है
एक मदहोश है ,एक पानी -पानी हुआ जाए ।
बेतरतीब है आलम ,क्या दिन क्या रात
फिसलती ज़ुबां पर होती सिर्फ हमारी बात ।
अब तो बदनामियों से भी डर नहीं लगता है
लगता है इश्क के उस मुकाम को हमने पा लिया है ।
बेहतरीन ग़ज़ल खास इस ये शेर तो लाजवाब है,
राख़ पर चल दें हम तो वो भी सुलग जाए
हुस्न ऐसा बेमिसाल कि मगरूर हुए जाते हैं।
अरुन = arunsblog.in
मस्त मस्त है गजल यह , किसका कहें कमाल ।
खुश्बू जो पाई जरा, हुवे गुलाबी गाल ।
हुवे गुलाबी गाल, दिखे प्यारे गोपाला ।
काले काले श्याम, मुझे अपने में ढाला ।
बहुरुपिया चालाक, शाम यह अस्तव्यस्त है ।
वो तो राधा संग, दीखता बड़ा मस्त है ।।
जब बदनामियों के दर पर काबू हो जाये तभी इश्क हुआ समझिये ,सुपर पोस्ट
"राख़ पर चल दें हम तो वो भी सुलग जाए
हुस्न ऐसा बेमिसाल कि मगरूर हुए जाते हैं।"...यही तो है सच्ची ख़ूबसूरती... बढ़िया ग़ज़ल...