आसमां मेरे हिस्से का
वृक्षों के छालों सा
सांप की केंचुली सा
पुराना आवरण बहुत भारी था
मवाद के रिसाव सा बदतर था ।
देखा छालों को गिरते
समय की प्रवाह में बहते
मैंने भी वह आवरण उतार दिया
समय के साथ जीना सीख लिया ।
विरस पतझड़ पर सरस सावन सा
रात पर प्रभात की विजय सा
मैंने अँगड़ाई लेना सीख लिया
पथ के शूलों को फूल बना लिया।
दर्द के दरिया से पा रही त्राण हूँ
आखिर प्रकृति की अनमोल प्राण हूँ।
कुंठाओं का परित्याग कर मन का द्वार खोल दिया
हवाओं के आवागमन ने हर शिकन उड़ा दिया ।
कोहरे से छंटती भोर सा
ओस की गुदगुदाती स्पर्श सा
नर्म ,मखमली संसार रचा है
और अपनी ही आभा बिखेर दिया है ।
गज भर ज़मीं पैरों के नीचे की
बेहद मज़बूत हो गयी है
मुट्ठी भर आसमां मेरे हिस्से का
इन्द्रधनुषी हो गया है ।
वाह! क्या बात है