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           फलक पर 

तुम्हें फलक पर  ले जाऊँगा 
चाँद - तारों के बीच बसाऊंगा
एक ऐसी दुनिया जहाँ तिरोहित होंगे 
हर बाधा - प्रतिबन्ध  ।
उस आकाशगंगा को इंगित करते 
तुम्हारे शब्द अमृत घोल रहे थे 
मैंने तो फलक पे अपना 
ताजमहल भी देख लिया था ।
जो तुमने मेरे जीते -जी बनाया था 
तब क्या पता था प्यार की नींव 
बलुवाही मिट्टी पे टिकी है 
विश्वास को डगमगाते देर न लगी 
और तमाम आरोप - प्रत्यारोपों  की आँधी
ध्वस्त कर गयी वो ताजमहल 
सब दफ़न हो गए वो वादे ,इरादे 
और प्यार करने वाली दो आत्माएँ।
मेरी किताबों में रखी लाल गुलाब की पंखुरियाँ
सुख कर भी महकती हैं 
शायद हमारे खुशनुमा पलों की एकमात्र निशानी 
अब भी हमारे वजूद को जी रही हैं ।

Unknown  – (27 August 2012 at 21:40)  

दिल को छु लेने वाली कविता के लिए कविता जी का धन्यवाद....

kavita vikas  – (28 August 2012 at 01:00)  

virendra sharma ji ..bahut bahut dhanywaad

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