इस ब्लॉग से मेरी अनुमति के बिना

कोई भी रचना कहीं पर भी प्रकाशित न करें।

अनचाहा मिल जाता है


---------------------------------
याद तुम्हारी जब आती है
हृदय सुमन खिल जाता है
जिसकी चाह नहीं मिलता वह
अनचाहा मिल जाता है ।
               हो नज़रों से दूर भले तुम
               मन में पर रहते तुम हो
               दुख – सुख के हर मंज़र पर भी
               आँखों से झरते तुम हो ।  
साथ के मौन संवादों से
उधड़ा मन सिल जाता है ।
                कोई शिकवा नहीं किसी से
                न इल्तिज़ा अरी ज़िंदगी
                हमनें तो हँसते – रोते की
                तेरी उम्र भर बंदगी ।
रुत वसंत के आते ही यह
मन अक्सर हिल जाता है ।
                   खुश हूँ जब से ठानी है
                   खुश रहना हर हालत में
                   सज़दे करती हूँ मंदिर में
                   रम कर छंदों – आयत में ।
द्वार प्रभु के ही टिकता पाँव
जब काँटों से छिल जाता है ।
                     क़ैद आज भी है आँखों में
                     मुलाकातों का वो गाँव
                     तेरी बाँहों के घेरे में
                     मिलती सुकूं की जो छांव ।
बड़े जतन से संभालूँ जब
पास तेरे दिल जाता है ।
जिसकी चाह नहीं मिलता वह
अनचाहा मिल जाता है ।

Read more...

संक्रमण
-------------
युग का सबसे संक्रमणकारी दौर है यह 
हवा में तैरते वायरस कितनी जल्दी 
बातों के रोग का संक्रमण फैला देते हैं 
इसका अंदाजा भी नहीं लगता। 
बेबात पर बात बढ़ जाती है 
चुप रहने पर बवाल  हो  जाता  है
 यही  तो संक्रमण है 
खड़ा होता है वह  अकेला कवि 
चारों ओर से घिरा हुआ 
शक्तिशाली ,तलवारधारी ,बाहुबलियों से 
और ,अभिमन्यु तो निहत्था है 
लड़ रहा है अपने शब्दों के बल पर
आँखों  में रोश ,हृदय में आग  लिए
जूझ रहा है मूल्यों की धरातल पर । 
एक तरफ हथियार है 
एक तरफ अकेला कलमकार 
मूक दर्शक बन देखने वाले मानुष 
जिजीविषा की लालसा रखते हो 
तो कूद पड़ो अभिमन्यु के साथ 
 जीतेजी भी तो तुम मरते आये हो 
युगों से ,क्योंकि तुम शब्दहीन हो 
पर वह मसिजीवी जीवित रहेगा 
बिना संक्रमण का शिकार हुए। 

Read more...

LinkWithin