इस ब्लॉग से मेरी अनुमति के बिना

कोई भी रचना कहीं पर भी प्रकाशित न करें।


     तन्हा सफ़र चाँद का 

वक़्त है ,मौसम - ए - बहार का  
फिज़ाओं में रंग भरने का
 तन्हा - तन्हा जीवन में 
मुहब्बत ही मुहब्बत भरने का ।
अब तो ,धड़कनों पर राज़ का 
सपनों पर अधिकार किसी का 
मेंहदी रचे हथेलियों में 
शर्मा कर चेहरा छुपाने का ।
अमोल है ,जुड़ना दिल के स्पंदनों का 
बहकना शाम की रंगीनियों का 
दुनिया की स्नेहल भीड़ में 
अहसास अकेला होने का ।
रुत है ,दरिया -ए -इश्क में बहने का 
इश्क की आग में जलने का 
हाल -ए -दिल बयां करने में 
घबरा कर होंठों को काटने का ।
देखा है एक जोड़ा हंसों का 
कसमें लेते जीने - मरने का 
ठहर कर छत की मुंडेर पे 
पैगाम दे जाते ,मुझ सा उनके हाल का ।
बोझिल है ,तन्हा सफ़र चाँद का 
थका -थका ,तलाश हमसफ़र का 
टिक कर खिड़की के एक कोने पे 
प्रयास है मुझे  अपना बनाने का ।
अजीब है आलम बेचारगी का 
अंदाज़ जुदा है जीते - जी मरने का 
उस एक ने नूर भरा जीवन में 
जवाब नहीं मेरे दिलबर का ।

Read more...


  वसंत झूमता है 

शीतोष्ण का संधिकाल 
बेहद रोमांचक होता है 
एक ओर शरद का उठता साया 
दूसरी ओर ग्रीष्म से जुड़ता नाता 
और ,बीच में वसंत झूमता है ।
नव पल्लव ,नव किसलय 
नव पुष्प में ऋतुराज खिलता है
 बौराई पवन अपने वेग में 
कभी सरसों हिलाती 
कभी महुआ गिराती 
पीत वर्ण की सज्जा बागों में    
सेज मनमोहक सजाती  है ।
आमों में मंजर फूटते 
 लसलसायी सी झुकती - गिरती 
भ्रमरों की टोलियाँ 
रसपान को होड़ लगाती 
कोयल की सुमधुर कूक 
पपीहे की मचलती सी हूक
नीरवता में यूँ गूंजती है 
प्रकृति ने जैसे सुर - सरगम छेड़ी है ।
शुष्क बयार का अंदाज़ अनोखा 
कभी अमलतास में खोता 
कभी गुलमोहर को उड़ाता
खुशबुओं से हो लबरेज 
बदन की सिहरन में भी गुदगुदाता 
बिरहन की अगन लहकाता
मन ही मन मुस्काता है ।
वसंत अपने अल्पावधि में 
सर्वत्र जीवंतता भर देता है 
चतुर्दिक बिखेर रंगत अपनी 
पर - पीड़ा हर लेता है 
नयनाभिराम वह, सुखसिंधु बन 
दिल में हिलोरें भरता है और
प्रकृति का  सन्देश यह बतलाता है 
 कि अगर शरद रुलाता है 
तो क्या वसंत नहीं झुमाता है ?  

Read more...


  दार्शनिक  साँझ 

क्षितिज पर ढलता सूरज 
गुलाबी आसमां
नारंगी ,मटमैली किरणें 
क्षीण सी ,निस्तेज 
धूमिल दिशाएँ 
कैसी सुन्दर साँझ ।
नीड़ को आतुर 
व्याकुल खगदल
थकी सी कलरव 
श्रांत क्लांत तन 
गोधुली बेला 
मनमोहक सांझ ।
भोर से था विभोर
पंक में उद्भाषित 
छेड़ता सौन्दर्य -गान 
लाल -सफ़ेद पद्म 
मुंद रहा आँखें 
दार्शनिक साँझ ।
हाथों में हाथ डाले
 खुशियों में सराबोर 
क्रीड़ाओं से निवृत 
आ रहे शिशु विकल 
माँ को लुभाने 
खूब रिझाती सांझ ।
सुबहा चलने का नाम 
सांझ है प्रतीक विराम 
अनवरत यह फेरा 
चराचर को बाँधे
आती - जाती 
उपदेशक सांझ ।
समय का फेर 
होता बड़ा बलवान 
स्वयंभू है बदलाव 
जीवन के मेले में 
आज सुबह है 
कल अवश्यम्भावी सांझ ।

Read more...


     
        तुम तक पहुँच पाऊं
दरख्तों को चीरतीं किरणें चपल 
सुमधुर ,सुस्मित कीच बीच कमल 
विवस्त्र द्रुमों में हिलता एक पल्लव 
अलसाई भोर को चीरता  खग - कलरव 
जाने किन - किन रूपों में बसते हो नाथ 
हर पल रहते पास ,फिर भी मैं अनाथ 
कभी तो दरस दिखला जाओ सर्वाधार 
मिट जाए जन्मों का फेर हो एकाकार ।
भर दो भावों की सरिता विमल 
पावन तन से सजाऊँ तेरा आसन निर्मल 
दुःख के बवंडर से न टूटे आस्था 
वंदन में तुम्हारी  नित झुके माथा 
निष्ठुर आशाएँ चाहे जितनी बहलायें 
मृगमरीचिका सी चाहे जितनी झुठलायें 
थाम लेना नाथ जो हो जाऊं विचल 
नेह का दीपक जलता रहे प्रतिपल ।
मोहपाश में जकड़ी यह दुर्बल काया
नासमझ मन जाने नहीं जग की माया 
अथ के साथ रचा है तुमने इति
नश्वर देह से प्रेम छलता है मति 
जाना है छोड़ सब सम्पदा व रिश्ते -नाते 
शाश्वत यह सच ,काश हम अपना पाते 
झुलस जाता है मन उद्वेग - अगन में 
 बरस जाओ पीयूष सा ,रेत की तपन में।
तुम ही हो साधना ,तुम बनाते  साध्य 
तुम हो आराधना ,तुम ही रचते आराध्य 
हर भेद जानूँ, फिर भी अज्ञानी कहलाऊं
भ्रांतियों में लिप्त हूँ ,तभी मानव कहलाऊं 
ईप्साएँ अनंत बंधी हैं हर सांस में 
कैसे विमुक्त होऊं,उपाय किस ध्यान में 
विनत प्रार्थना है नाथ ,विषय - जाल बेध पाऊं 
रोशन कर  तम चित्त का ,तुम तक पहुँच पाऊं।

Read more...


          जीवन अमृत

तमाम झंझावातों के उठा - पटक में भी 
ज़िन्दगी ,तुम खूब भाती हो 
हर घड़ी इंतहा लेने की जिद 
तुम्हारी कम नहीं हुई 
हर जिद में खरा उतरते - उतरते
मैं भी जीवट हो गई।
विस्मृत नहीं हुईं  हैं वो शोखियाँ 
रिश्तों की तपिश ,मासूम गलतियाँ
क्या खोया ,क्या पाया का मकड़जाल
चाह कर भी उलझा नहीं पाता है 
थपेड़ों की मार  जैसे साहिल गले लगाता 
मैंने भी हर चोट बखूबी सहेजा  है ।
गिरकर संभलने की फितरत 
अब तो आरज़ू बन गई है 
अंगार पर चलूँ या आँधियों के मध्य 
चुनौतियों का निमंत्रण हरदम स्वीकारा है 
फिर भी ,हम शतरंज की शह - मात नहीं 
जिंदगी मैंने तुम्हे बेहद प्यार किया है ।
अनुभवों की भारी पोटली लिए 
मूल्यांकन करती जीवन चक्र का 
जीवन की संध्या ढलता सूर्य भले हो 
पर सुनहरी सुबहा का भी संदेशा है 
फूलों की डालियाँ काँटे भी संजोए है 
यथार्थ यही जीवन अमृत में पाया है ।

Read more...

LinkWithin