ठुकरा दिया मैंने खुदा
बंद आँखों पे समझना न नींद का कहर
धुंधला न जाएँ सपने सो पलकें गयीं हैं ठहर ।
खो गए हो दुनिया की भीड़ में छोड़ मेरा दामन
वक़्त थम गया ,बहारें रूठ गयीं छोड़ मेरा आँगन ।
हम तो बैठे हैं पहलु में भूल हर खता को
किस गुनाह की सजा देते हो भूल मेरी सदा को ।
जीने का बहाना मिल गया उलझनों में तलाशते रास्ता
वरन् फूल भरी जिंदगी के छलावे से होता बस वास्ता ।
अब भी खड़े हैं हम वहाँ रास्ते जहां से हुए जुदा
इक तेरी सूरत के वास्ते ठुकरा दिया मैंने खुदा ।
मिल जाओ गर भागती जिंदगी की जद्दोजेहद में
अजनबी सा ठिठक जाना पहचानी सी आहटों में ।
ढेर सारी यादों को देकर भूल जाने कहते हो
मानों सागर में मिली अश्कों को ढूंढ़ लाने कहते हो ।
आपकी बेरुखी ने मुझे आपका कायल बना दिया
आपकी तसव्वुफ़ से रेगिस्तान में सहरा बना दिया ।
bahut sundar...
anu
सुंदर भावपूर्ण रचना !
very nice
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अब भी खड़े हैं हम वहाँ रास्ते जहां से हुए जुदा
इक तेरी सूरत के वास्ते ठुकरा दिया मैंने खुदा
वाह लाजवाब खास कर इस शे'र के लिए ज्यादा दाद......
अब भी खड़े हैं हम वहाँ रास्ते जहां से हुए जुदा
इक तेरी सूरत के वास्ते ठुकरा दिया मैंने खुदा ।..bahut khub