वक़्त का वज़ूद
वक़्त का वजूद
वक़्त की बेलगाम रफ़्तार का वजूद
है स्नेहसिक्त माँ की आँचल में मौजूद ।
दिखता है चेहरे की गहराती रेखाओं में
और कभी -कभी जीवन की भूलभुलैया में ।
सन्नाटों में गूँजती है मेरी चहक
कोने -कोने में है मेरे होने की महक ।
प्रियजनों का छूटता साथ ,रिश्तों की बारीकियाँ
कभी रुलाती कभी सहलाती ,अमिट ये निशानियाँ ।
जिन शक्त हाथों को थामे चलना सीखा
उनकी लकीरों में युगों का अंतराल दिखा ।
उन काँपती बेजान हाथों की नरमी
अब तक छुपाये है प्रचुर नेह की गरमी।
जीवन का यथार्थ एक कटु दिवास्वप्न है
रेत बन तुरंत मुट्ठी से फिसल जाता है ।
अतीत के गर्भ में चाहे सब कर दो विसर्जित
कुछ कालखंड सदा रहते दिल में सुसज्जित ।
भाव और बहाव युक्त प्रस्तुति ||
बहुत बढ़िया..
सुन्दर रचना...
thank you ,aabhar Ravikarji and Expressionji
चराचर का भेद समझा जब ज्ञानदीप से
जीवन को गुज़रता देखा सामने से
अतीत के गर्त में चाहे सब कर दो विसर्जित
अभिन्न जनों को जोड़ता हृदय-तार
अखंडित रहता ,झेलता समय की मार
....gyan ke tar jab jhankrit ho uthte hain tabhi yatharth ko bodh hota hai..
sundar bhavpurn rachna!
अच्छी प्रस्तुति ।
thank you sanjay bhaskarji and kavita rawatji