वसंत
नवजीवन का उल्लास लिए आया ऋतुराज
मन का बावरा पंछी चहक रहा आज
कभी नील गगन में ,कभी छत की कगार
नग्न वृक्षों पर चढ़ा वसन कर सोलह श्रृंगार
वसंत तुम केवल ऋतुचक्र नहीं ,मेरे प्रतीक हो
मेरी कई अनकही बातों का उद्गार हो
अपनी दर्पण में देखो ,मेरी ही चंचलता है
मेरी साँसों की गर्मी में ,तुम्हारी ही उष्णता है
पलाश अब मत चिढ़ा अपनी टहकार से
तकती आँखें चमक रही आत्मीय इकरार से
पपीहे छेड़ राग प्रिय ने पाती भेजा प्यार का
लाज का पट हटा मेहंदी लगा लूं उसके नाम का
परागकण झाँक रहे खोल घूँघट किसलय का
बन मधुप उड़ आओ नेह निमंत्रण है मलय का
आँखों में कटती रात ,बीत न जाए मधुमास
समरस हो जाए साँस ये बहार बन जाए ख़ास
बहुत सुन्दर...
प्रकृति अपने पूरे निखार पर है...
सादर.
अनु