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स्पर्श प्यार का


  दिल में आशियाँ बनाने वाले ,काश ऐसा होता 
कभी सैर के बहाने ही आते ,दिलासा तो मिलता ।
बादलों संग आँख मिचौली खेलना ,चाँद की फितरत 
जी चाहता है पहलु में छुपा लूँ ,तुमसे न होऊँ रुख़सत।


प्यार के परवान में पिंजर भी है मंदिर बन जाता 
हर्ष में हिलोरें लेता मन ,कभी विषाद में गहराता ।
ज़हर पीता है कोई ताउम्र ,कोई आँखों में बसता
यही है जीवनाधार ,चारदीवारी से कहाँ घर बनता ।


प्यार के रंगों की अपार विस्तार में है दुनिया 
कोई खुशबुओं का जहाँ कहता ,कोई आग का दरिया ।
कोई चाँद में हूर ढूंढता है ,कोई इबादत का ज़रिया
बड़ी कशमकश है ,कहीं अमावस कहीं चांदनी दुधिया ।


स्पर्श प्यार का अक्षुण्ण ,अमिट, शाश्वत है 
अनुभूतियों का सागर कहीं खारा कहीं मीठा है ।
आरजुओं के समंदर में तैरते सभी ,लिए सहारे अनेक 
अंगारों पे चलना भी भाता ,बेपर उड़ता हरेक ।


आ जाओ  तुम पयोद बन ,पीयूष बरसाओ
छा जाओ मेरे आकाश में ,ना अब तरसाओ।
देखो बन गयी हूँ  मैं ऊसर ,निष्प्राण धरा
सोंधी महक उड़ाती कर दूँगी चितवन हरा ।

vidya  – (26 February 2012 at 08:37)  

स्पर्श प्यार का अक्षुण्ण ,अमिट, शाश्वत है
अनुभूतियों का सागर कहीं खारा कहीं मीठा है ।
आरजूओं के समंदर में तैरते सभी ,लिए सहारे अनेक
अंगारों पे चलना भी भाता ,बेपर उड़ता हरेक ।

बहुत सुन्दर रचना..
बधाई..

RITU BANSAL  – (26 February 2012 at 22:34)  

सुन्दर प्रभावी रचना..
kalamdaan.blogspot.in

kavita vikas  – (27 February 2012 at 08:07)  

vidyaji aur rituji ...kotishh dhanyawad

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  – (28 February 2012 at 03:25)  

सपर्श प्यार का ही तो जीवन का सम्बल है!
आपको जनमदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

रविकर  – (6 March 2012 at 21:23)  

खारा सागर मीठी गागर, शीत-ऊष्ण धाराएं |
कहीं मरुस्थल-उद्यानों में, भीषण-सुखद हवाएं |
चंदा की फितरत समझे मन, तन समझे घन वर्षा
अमृत बूंदाबांदी से यह जीवन-ऊसर हर्षा ||


DINESH CHANDRA GUPTA
STA, ECE
ISM, Dhanbad


दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।

udaya veer singh  – (8 March 2012 at 19:28)  

सुन्दर सृजन, प्रभावशाली ..... बधाईयाँ जी /

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib')  – (9 March 2012 at 02:56)  

सुन्दर रचना... वाह!
सादर.

kavita vikas  – (11 March 2012 at 09:35)  

आभार कैसे व्यक्त करूँ??? शब्द और साधन नहीं हैं ...मेरे मन का उद्गार आप तक पहुँच ही गया होगा ,लेखक ही लेखक को समझता है ,आखिर बधाई देने वाले भी तो पारखी नज़र वाले हैं ।

prakriti  – (27 March 2012 at 07:49)  

bahut sundar man ko chhuti huyi rachna...Ma saraswati ki vishesh kripa hai aap par ...BADHAYI HO SUNDAR RACHNA KE LIYE...

amresh mishra  – (11 January 2013 at 12:30)  

cha jao ab aur na tarsao...wah ii have no word

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