सुखसागर मैं बन जाऊँ
भुवन -भास्कर मेरे ,तुम्हारी सतरंगी रश्मियों का
एक पुँज मैं बन जाऊँ ,
समस्त दिशाओं में नहीं ,केवल एक छत का
अँधियारा हर ,रोशन मैं कर जाऊँ ।
हुंकार भरते पयोद प्यारे ,तुम्हारी संचित नीर की
एक बूँद मैं बन जाऊँ ,
पूरी वसुधा नहीं ,केवल एक गज ज़मीं की
सुधा बन ,मैं प्यास बुझाऊँ ।
उन्मादी बलखाती तटिनी ,तुम्हारी जोशीली शक्ति की
एक धारा मैं बन जाऊँ ,
सम्पूर्ण धरा नहीं ,केवल मरू की छाती का
सिंचन कर ,मैं हरियाली लाऊँ ।
ब्रह्मांड सा विस्तार हमारी अनंत इच्छाओं का
एक लघुपद ही उठा पाऊँ ,
दीर्घ छलांग नहीं ,केवल इर्द - गिर्द परिसर का
सुखसागर मैं बन जाऊँ ।
कितनी प्यारी कविता..!!
kalamdaan.blogspot.in
thank you Dilbagji ,for adding this one in Charcha manch
Rituji,thank you for liking this presentation and encouraging me
aabhar