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सुखसागर मैं बन जाऊँ


                                         
  भुवन -भास्कर मेरे ,तुम्हारी सतरंगी रश्मियों का 
एक पुँज मैं बन जाऊँ ,
समस्त दिशाओं  में नहीं ,केवल एक छत का 
अँधियारा हर ,रोशन मैं कर जाऊँ ।


हुंकार भरते पयोद प्यारे ,तुम्हारी संचित नीर की 
एक बूँद मैं बन जाऊँ ,
पूरी वसुधा नहीं ,केवल एक गज ज़मीं की 
सुधा बन ,मैं प्यास बुझाऊँ ।


उन्मादी बलखाती तटिनी ,तुम्हारी जोशीली शक्ति की 
एक धारा मैं बन जाऊँ ,
सम्पूर्ण धरा नहीं ,केवल मरू की छाती का 
सिंचन कर ,मैं हरियाली लाऊँ ।


ब्रह्मांड सा विस्तार हमारी अनंत इच्छाओं का 
एक लघुपद ही उठा पाऊँ ,
दीर्घ छलांग नहीं ,केवल इर्द - गिर्द परिसर का 
सुखसागर मैं बन जाऊँ ।

RITU BANSAL  – (23 February 2012 at 00:58)  

कितनी प्यारी कविता..!!
kalamdaan.blogspot.in

kavita vikas  – (24 February 2012 at 05:12)  

thank you Dilbagji ,for adding this one in Charcha manch

Rituji,thank you for liking this presentation and encouraging me

aabhar

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