तुम सावन मैं बदली
सावन जब - जब तुमने चाहा
मैं बदली बन जाती हूँ
निःशब्द मौन निमंत्रण में तुम्हारे
आत्म - विसर्जन कर जाती हूँ ।
बारिश की मोतियाँ चुन कर
जीवन अपना सरस बना लेते हो
मन की सुखी डालों पर पुष्पित कर
मुझे निःशेष बना देते हो ।
मास दर मास कैसे बीते बताओ ज़रा
विरह अगन में छोड़ दिया जलने को
अगले बरस तक तपा कर धरा
पुनः बदली बन बरसने को ।
एक जुस्तजू है सावन पिय की
भूल न जाना मुझे लम्बी दूरियों में
बेमौसम देखो जब एक टुकड़ी बादल की
समझ लेना रात बीती है अँखियों में ।
प्रकृति से मानवीय रिश्तों के मनोहारी भाव
एक जुस्तजू है सावन पिय की
भूल न जाना मुझे लम्बी दूरियों में
बेमौसम देखो जब एक टुकड़ी बादल की
समझ लेना रात बीती है अँखियों में ।बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ,इन्हीं के नाम दो पंक्तियाँ कवि नीरज की -शायद मेरे गीत किसी ने गायें हैं ,इसीलिए बे -मौसम बादल छाये हैं . .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 22 अगस्त 2012
रीढ़ वाला आदमी कहलाइए बिना रीढ़ का नेशनल रोबोट नहीं .
एक जुस्तजू है सावन पिय की
भूल न जाना मुझे लम्बी दूरियों में
बेमौसम देखो जब एक टुकड़ी बादल की
समझ लेना रात बीती है अँखियों में ।बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ,इन्हीं के नाम दो पंक्तियाँ कवि नीरज की -शायद मेरे गीत किसी ने गायें हैं ,इसीलिए बे -मौसम बादल छाये हैं . .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 22 अगस्त 2012
रीढ़ वाला आदमी कहलाइए बिना रीढ़ का नेशनल रोबोट नहीं .
वाह क्या कहने..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!