लहरों की कहानी
सागर की बेशुमार जलराशि में
लहर बनकर जीता हूँ
दिन - रात की जद्दोजहद में
ज़रा न शिकन लाता हूँ ।
चाँद छूने की जहमत में
उठ -उठ कर गिरता हूँ
बेमिशाल इस प्यार में
हर रात पागल कहलाता हूँ ।
उठती है जब तूफां दिल में
आक्रोश तट पे निकालता हूँ
कितने ही जनजीवन चपेट में
अनायास ही ले लेता हूँ ।
प्रौढ़ नदियों की थकान में
मिलनसुख की तड़प है
नभ के निहुरते सूनेपन में
मेरे आलिंगन की ललक है ।
आरज़ू है दिल के कोने में
काश चाँद आकर बस जाता
क्षितिज की लालिमा में
अक्स हमारा दिख जाता ।
प्रेम की अधूरी अभिलाषा में
जीवन सर्वस्व लुटाया हूँ
परपीड़ा भर अपनी झोली में
कलंक खारा का पाया हूँ ।
सुंदर !
चर्चा मंच पर है यह टिप्पणी -
कविता करे विकास नित, कवि के मन की चाह |
शीतल चन्दा चांदनी, मिले आस को राह ||
ravikarji aur sushil ji ko mera sadar dhanywaad
सागर का बिम्ब बहुत ही खूबसूरत लगा कविता में बहुत खूब