भावभीनी
बात हो
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दंभ
-अहंता से दूर
सहज
यथार्थ हो अपनी परिभाषा
रीत
न जाए मधुरस जीवन का
ऐसे
आकर्षण का प्रतिपल
उठता
विशब्द ज्वार हो।
मान
- अपमान से परे
एक
घरौंदे के राजा - रानी हम
पथ
प्रस्तर हो या शूलों भरी
प्यार
- मनुहार का अविरत
कलकल निर्मल धार हो।
द्वंद्व
- प्रतिद्वंद्व को भूल
नैनों
के दर्पण में हो प्रतिबिंबित
दो
आत्माओं की प्रणय अभिलाषा
जल
- सा पारदर्शी अंतस से
भावभीनी
बात का उद्गार हो।
दुराव
- छिपाव को छोड़
सुन्दर
सी जीवन बगिया में
विश्वास
सलिला निर्बाध बहे
कुछ
अर्पण ,कुछ समर्पण का
वितत
जीवन सार
हो।