इस ब्लॉग से मेरी अनुमति के बिना

कोई भी रचना कहीं पर भी प्रकाशित न करें।

बरस - बरस घन बरसाओ  रे
------------------------------------------------

बरस - बरस घन बरसाओ  रे
हरस - हरस मन हरसाओ रे।
 शप्त पतझड़ में मधुवन
 आँखन में  है असवन
 सूना - सूना है चितवन
 नद- पोखर ,वन - उपवन
उठ रहा मेघों का ज्वार  आज
नयन और गगन हुए  एक आज
यादों से न तन को तरसाओ रे
बरस - बरस घन बरसाओ रे
 कैसे बतलाऊँ प्रेम की पीर
 निशि दिन रहता मन अधीर
  पलक बिछाऊँ यमुना के तीर
   इस सावन आएगा मेरा हीर
 हर वन - प्रांतर का उत्ताप आज
हर मन - आँगन का संताप आज
सरस पावस धन दरसाओ रे
बरस - बरस घन बरसाओ रे
 ओढ़ कर चुनरिया धानी
  इठला रही वसुधा रानी
   न करना मेघ मनमानी
 तुमसे बड़ा न कोई दानी
बरसा अमृत कण - कण सरसाओ रे
बरस - बरस घन बरसाओ रे। 

निंदक नियरे राखिये  – (12 July 2016 at 23:53)  

बहुत सुंदर गीति काव्य

Post a Comment

LinkWithin