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सडकों में नपती हैं शहरों की दूरियां 
दिल के रिश्तों में कहाँ कमती दूरियां 

अहसासों को  बाँध लेते गर सीमाओं में 
फिर कहाँ सालती हमारे  बीच की दूरियां 

टूट जाता है सब्र का सैलाब कभी- कभी 
बारिशों  में जब जिय जलाती हैं दूरियां 

पहले तो पंछी भी पहुंचाते थे सन्देश
अब कहाँ रहे पंछी कि तय करें दूरियां

सीने में आग लेकर भी जी रहे मुकम्मल
इस  आग को और हवा देती हैं दूरियां...copyright kv

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