पन्ने अतीत के
>> Saturday, 7 January 2012 –
पन्ने अतीत के
पुरवा बयार कभी अकेले नहीं आती है
यादों का पुलिंदा साथ उड़ा लाती है ।
बहुत कोशिश की, वर्तमान के धड़कन को
आत्मसात कर लूँ ,भूल उस निर्मोही को ।
पर जाने क्या कशिश है ,क्या खींचता है
अंतर्दव्ंदव् का गिरह वहीँ आकर खुलता है ।
शिलाओं को चीर जो उन्माद धारा बहती थी
जाने क्यों अब शिथिल मटमैली हो गयी है ।
बाँसुरी की तान सुरीली जो गुंजित होती थी
आज ठूंठ बनी लकड़ी हो टूट रही है ।
मोती कहाँ मिलता हर सागर - मंथन में
जानकर भी बावरा मन, बहलता है बेकरारी में ।
वह उन्माद ,वह तान कहाँ से लाऊँ,कहाँ स्रोत है
अंतर्मन की खामोशी जाने किस तूफ़ान का संकेत है?
समय का पहिया सबके लिए एक सा घूमता है
फिर मेरे घर पर क्यूँ एक मुद्दत से रुका है ?
अब बस ,मत तौलो सही गलत के पैमाने में
स्वाति बूंद की चाह है, जीने की आरज़ू में ।
प्रेम की थाह मत पूछो, सीप में समाया सागर है
दुनिया तुम्हारी विस्तृत ,मेरी तो मुट्ठी में संसार है ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
dhanyawad ,aadarniya shastriji bless me to go ahead.
बहुत बढ़िया!
मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर , आपकी ये पोस्ट कल के चर्चा मंच पे लगाई जा रही है , सूचनार्थ
सादर ,
कमाल
अच्छी अभिव्यक्ति|बधाई |मकर संक्रांति हार्दिक शुभ कामनाएं |
आशा
bdhai sundar rachna hae .
शास्त्री भाई ,कमलजी , आशा व संगीताजी ,आपकी तारीफ के दो शब्द मेरी अगली रचनाओं के आधार हैं ।कोटिशः धन्यवाद
पुरवा का अंदाज ही अनोखा है ... अल्हड़ चाल , यादें तो उसका परिधान हैं . तभी तो -
पुरवा बयार कभी अकेले नहीं आती है
यादों का पुलिंदा साथ उड़ा लाती है ।
साभार,धन्यवाद
रश्मि दी
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
बधाई.
bansuri hamesha aapke geeto ko madhurta de..sundar rachana
ab kha sansar hai kitna bada sach likha aapne