आतंक
>> Wednesday, 25 January 2012 –
आतंक
आतंक
रात की निस्तब्धता
अदृश्य शोर
धुंधलाती भोर
निर्लिप्त क्षुब्धता।
हर ओर एक विकल प्राण
दौड़ती -भागती ,कुछ तलाशती
कभी पाती ,कभी खोती
अखंडित मृगतृष्णा ।
चेतन शून्य सहमे प्रयास
अनदेखा मंजिल
कितनी दूर ,कितने पास
परेशां बेहाल
खोते आस ।
एक विराम की अभिलाषा
कितनी सबल ,कितनी सुखद
यही तो है अविरल जीवन की
चिरंतन परिभाषा ।
चिरंतन परिभाषा ।sarthak post hae samarthak ban gai hoon aap bhi bane to mujhe khushi hogi.
thank you Sangitaji ,aap ki samarthak ho gayee hun