विश्वास
मधुर से इस शब्द की टंकार
रूह से रूह को जोड़ती है
रिश्तों के फलने का है यह आधार
वरना जीवन नासूर बन जाती है ।
वर्षों तक साथ रहना
महज एक औपचारिकता है
गर न हो विश्वास का सेतु
तो ज़ख्मों का रिसाव स्वाभाविक है।
विश्वास की बुनियाद जब हिल जाती है
रिश्तों की गाँठ तब न खुल पाती है
विवाह होता है सात जन्मों का बंधन
तभी जब विश्वास की चासनी में घुले हों
नहीं तो एक जन्म ही
सात जन्मों का भार बन जाता है ।
विश्वास है जीवन की धुरी
जहां न पनपता वहाँ
रहती है रिश्तों में दूरी
विश्वास से प्रेम है
प्रेम से भाव है
भाव से जीवन की कविता है ।
विश्वास के खाद से ही
कब्र पर खिली - खिली घास है
जिसके कोमल अहसास से
बिछोह के दमघोंटू क्षण पाते साँस हैं ।
वरना अविश्वास के कंटक तो
केवल छलते और खुद को छलाते हैं ।
बहुत अच्छी रचना....
अनु
बहुत बेहतरीन रचना..
जहाँ विश्वास न हो वो बंधन
बोझ से कम नहीं....
:-)
सुन्दर प्रस्तुती आदरेया ||
aabhar aap sabhi ka