प्रीत के गलियारे में
मुखर पड़े हैं शब्द हमारे
प्रीत के गलियारे में।
यायावर मन ठहर गया
स्वप्न सिंध में तर गया
मोह रहा संसार सारा
विरस पतझड़ भी लगे प्यारा ।
मन में तरंग प्रवहित
अंग - अंग उल्लसित
अहर्निश जपूँ नाम जिसका
भीगे अधरों के कंपन में ।
मुखर पड़े हैं शब्द हमारे
प्रीत के गलियारे में।
पद्मिनी मुस्काई मंद - मंद
गीत बन गया छंद - छंद
समंदर है उफन रहा
स्वर्णाभ लिए दमक रहा ।
लहर - लहर है उन्मादित
अवनि से अम्बर तक श्रृंगारित
अश्वन का प्रलय होता
कबसे रीते नैनन में।
मुखर पड़े हैं शब्द हमारे
प्रीत के गलियारे में।
चाँद इठलाता मुग्ध सा
लुटा कर चाँदनी दुग्ध सा
भा गया कोई ख़ास
हिय में भर उजास ।
शाख - प्रशाख है पल्लवित
रोम - रोम हो रहा पुलकित
इक - दूजे का मौन निमंत्रण स्वीकारें
आकर मन के बहकावे में ।
मुखर पड़े हैं शब्द हमारे
प्रीत के गलियारे में।
मुखर पड़े हैं शब्द हमारे
प्रीत के गलियारे में।
यायावर मन ठहर गया
स्वप्न सिंध में तर गया
मोह रहा संसार सारा
विरस पतझड़ भी लगे प्यारा ।
मन में तरंग प्रवहित
अंग - अंग उल्लसित
अहर्निश जपूँ नाम जिसका
भीगे अधरों के कंपन में ।
मुखर पड़े हैं शब्द हमारे
प्रीत के गलियारे में।
पद्मिनी मुस्काई मंद - मंद
गीत बन गया छंद - छंद
समंदर है उफन रहा
स्वर्णाभ लिए दमक रहा ।
लहर - लहर है उन्मादित
अवनि से अम्बर तक श्रृंगारित
अश्वन का प्रलय होता
कबसे रीते नैनन में।
मुखर पड़े हैं शब्द हमारे
प्रीत के गलियारे में।
चाँद इठलाता मुग्ध सा
लुटा कर चाँदनी दुग्ध सा
भा गया कोई ख़ास
हिय में भर उजास ।
शाख - प्रशाख है पल्लवित
रोम - रोम हो रहा पुलकित
इक - दूजे का मौन निमंत्रण स्वीकारें
आकर मन के बहकावे में ।
मुखर पड़े हैं शब्द हमारे
प्रीत के गलियारे में।
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल रविवार चर्चामंच पर की गई है कृपया पधारें.
बहुत सुन्दर रचना !
नई पोस्ट वो दूल्हा....