नया
साल - नया संकल्प
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भरेंगे
खुशियों के रंग
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पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाना यानि समय के चक्र का घूमना। इस अनवरत चलने वाली प्रक्रिया को हमने महीनों और वर्षों में बाँट दिया। आवश्यक भी था ताकि प्रकृति और मौसम की अदाओं को उनकी अवधि से जाना जा सके। काल खण्डों का ज़खीरा एक निश्चित अवधि में नए साल का तोहफा हमें दे जाता है। बारिश अपनी सिसकती बूंदों के साथ ज्यों ही विदा हुआ शीत ने पांव फैलाना आरम्भ कर दिया। फिर लम्बी उबाऊ रात ,मानों जाते - जाते भी न जाने का मन हो। रात की स्याही का एक कतरा भोर की बेहद नाज़ुक सफेदी के साथ मिलकर अजीब सम्मोहन पैदा करता है। यही है वह संधिकाल जब मेरे सामने के विशाल अमलतास और अशोक की डालियों में ऋत्विज सा प्रभाती गान करता खगदल उड़ने को व्याकुल हो जाता है। भोर होने
का आभास अलौकिक है। मैं पिछले बीस सालों से उगते सूरज का गवाह बन उसकी अक्षुण्ण ऊर्ज़ा को महसूस कर
रही हूँ। साथ होते हैं कुछेक सुबह - सुबह टहलने वाले लोग ,वरना ज्यादातर लोग उस समय निद्रा देवी की गोद में ही होते हैं। जिस दिन आलस करती हूँ ,सारा दिन बोझिल होता है। दिसंबर आते - आते कुहरे की चादर इतनी देर तक तनी होती है कि सूर्यदेव का दर्शन सम्भव नहीं होता। फिर भी क्या दिनचर्या रूकती है ?नहीं न ,भले ही काम कुछ देर से शुरू हो ,पर होता ही है। तो फिर क्यों न इस नए साल के उमंग में कुछ ऐसा संकल्प लें जो नीरसता में भी सरसता का अनुभव करा दे। ऐसा तभी सम्भव है जब हम जीवन से प्यार करना सीख जायेंगे। सभी इंद्रियों का सचेतन अवस्था में होना मानव जीवन की एक बड़ी उपलब्धि है। आइए,इस उपलब्धि का हर्ष मनाएँ।जीवन के अनुराग और विराग को पूर्णतः भोगें। इस नितांत सत्य से हम मुँह नहीं मोड़ सकते कि किसी प्यारे की मौत या बीमारी से जूझता कोई अज़ीज़ हमें तोड़ देता है। पर इस स्थूल शरीर से मोह करना भी तो एक भ्रम है। जितनी जल्दी इस भ्रम को समझ जायेंगे , निराशा हम पर
हावी नहीं होगी। समय एक मरहम का काम करता है जो ज़ख्म की पीड़ा भुलाकर खुशियों की सीपियाँ बिखेर देता है। उन सीपियों को झोली में भरने का संकल्प लें।
नया
साल - नया संकल्प। बच्चे एकेडेमिक परफोरमेंस सुधारने का संकल्प
लेते हैं तो गृहिणियाँ वजन कम कर के नीरोग रहने का। कोई समय से ऑफिस पहुँचने का संकल्प लेता है तो कोई अपनी कार्य - प्रणाली सुधारने का। संकल्प - विकल्प
और तार्किक क्षमता में प्रकृति का सबसे सबल प्राणी मनुष्य है। बीते वर्ष का विश्लेषण करना वह जानता है। क्या खोया ,क्या पाया ?क्या
अधूरा रह गया ?क्या सोचा था और
क्या हो गया ?आदि। संकल्प लेना एक चेतनशील प्राणी का लक्षण है और उसका क्रियान्वयन करना सजग होने का प्रमाण। कुछ लोग संकल्प तो बड़े - बड़े लेते हैं पर उनका
पालन करने में पिछड़ जाते हैं। इसलिए संकल्प भी अपने सामर्थ्य और साधन के अनुसार लेना चाहिए जिसे पूरा करना हमारे वश में हो अन्यथा हताशा हाथ लगती है। फिर जीवन की खुशियाँ पराई हो जातीं हैं। गौरतलब है कि उद्यमी ही लक्ष्य तक पहुँच पाते हैं और जब लगे कि हमने अपनी मंज़िल पा ली है तो अपने आप को शाबाशी दें ,जश्न मनाएं। खुश होने की किसी
भी स्थिति
में समझौता नहीं करनी चाहिए।
घर की सुख - शांति बनाये रखने का और नौकरी के उच्चतम शिखर तक पहुँचने का संकल्प तो आपने हरेक साल लिया है। चलिए, उनसे इतर इस बार कुछ ऐसा संकल्प लें जिसमे प्रकृति और पर्यावरण का हित हो तथा परोपकार की भावना निहित हो। अपने घर की आया के बच्चे को एक घंटा निःशुल्क पढ़ा दें ,अनपढ़ को अक्षर ज्ञान दें ,प्रतिफल लौट कर अवश्य आएगा। अपने बंगले के वीरान कोने में अपने हाथों से पौधारोपण करें। जब वृक्ष बन कर वह फूलेगा - फलेगा ,यकीं मानिये बिलकुल वैसी ही प्रसन्नता होगी जैसी अपने बच्चों को बढ़ते देख कर होती है। अपने जीवन काल में पेड़ लगाने का संकल्प बहुत नेक है। इससे पर्यावरण की रक्षा होगी और आने वाली पीढ़ियों को एक हरे - भरे ग्रह का सौगात मिलेगा। पतझड़ में भी आपको सुंदरता दिखाई देगी क्योंकि तब तक आप जान चुके होंगे कि कंकाल सा प्रतीत होता तरु भले ही कुछ समय के लिए निराश कर दे पर यह तो जीवन - चक्र है। पतझड़ में यदि लता – पल्लवन
हो तो क्या वसंत मोहक लगेगा? आखिर जिस रोशनदान से रश्मि आती है ,उसी के पीछे तो रजनी भी गहराती है।तो ,खुश रहने का संकल्प
लें। हर दिन एक उत्सव की भाँति हो। याद करें ,जब भैतिकवादी
सुख - सुविधाओं का जुनून नहीं पनपा था तब घर में एक फ्रिज़ या टेलीविज़न आने पर भी मोहल्ले वाले उसे देखने आते थे। कितने अच्छे थे वो दिन। छोटी - छोटी खुशियाँ जीवन में रंग भरतीं थीं । आज
हम बड़ी खुशियों का इंतज़ार करते हैं जो मृगतृष्णा के अलावा और कुछ नहीं। बड़ी खुशियों के इंतज़ार में जीवन की शाम हो जाती है फिर इनका उपभोग करने के अवसर क्षीण पड़ जाते हैं। कुछ बिंदुओं पर ध्यान दें तो बहुत हद तक जीवन में खुश रहने के मूलमंत्र हम पा सकते हैं -
१.
जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएँ। अपने मन में नकारात्मक विचार न आने दें। जैसे ही ईर्ष्या ,द्वेष या बदला
लेने की भावना आने लगती है , अपने साँसों की आवाजाही
पर ध्यान केंद्रित करते हुए तेज क़दमों से चलें।
२. हर आदमी का एक वज़ूद होता है भले ही वह पद - प्रतिष्ठा
में आपसे छोटा हो। उनका मज़ाक हरगिज़ न उड़ाएँ।
३. ख़राब से ख़राब चीज़ों में भी अच्छाई ढूंढे।
४. ईश्वरीय सत्ता पर भले ही विश्वास न हो ,फिर भी जीवन
की अनिश्चितता को सदा याद रखें।
५. संवेदनशील बनें तभी आप फूलों की सुंदरता ,पंछियों का कलरव ,ओस के
बूँदों की शीतलता और बच्चों की तुतली बोली का आनंद उठा पाएंगे।
६. प्रण कर लें कि दिल में किसी प्रकार के कलुषित विचार को नहीं पनपने देंगे और स्वस्थ दिमाग से कुछ अच्छा सीखने की राह पर चलेंगे ,तो कोई
बाधा राह से डिगा नहीं पायेगी।
एक
दिन मैंने आठ - नौ साल
के एक बच्चे से कहा ,"पिछले साल वाली गलतियाँ नए साल में नहीं दुहराना ,प्रण करो। " बच्चे
ने मासूमियत से कहा ,"जी मैम , इस बार नयी गलतियाँ करूँगा। " बच्चे ने एक शाश्वत सच को याद दिला दिया ,"टू ऐर इज़ ह्यूमन। " गलतियाँ करना तो स्वाभाविक है पर बार- बार एक ही
गलती न हो इसे हमे ज़रूर देखना चाहिए क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध हमारे स्वभाव और जीवन - शैली से जुड़ा
है जो हमे विषाद की स्थिति में ला सकता है।
याद
कीजिये ,अंतिम बार कब आपने बालकनी से ढलते सूरज का नज़ारा आँखों में क़ैद किया था ?कब बिटिया
का निकर बदलते समय उसके पैरों को गाल से टिकाकर रोमांचित हुए थे ? गली में खेलते बच्चों की फ़ौज़ ने आपके आँगन में आयी गेंद माँगा और आपने प्यार से झिड़कते हुए एक बॉलर की तरह उनकी ओर गेंद फेंका ,कब
? आपके ललाट पर गिरती हुए ज़ुल्फ़ों को देख कॉलेज के दिनों में कसा हुआ एक जुमला क्या अब याद आता है ? नहीं न। दौड़ -भाग और तनाव भरी ज़िन्दगी में हँसने के लिए वक़्त नहीं। तो , इस साल पत्नी
के साथ उन स्थानों को जाएँ जहाँ आप हनीमून के लिए गए थे। तब और अब के परिवर्तन आपको गुदगुदाएंगे। अपने सच्चे मित्रों के साथ कुछ वक़्त गुज़ारें जो एक - दूजे के हमराज़
थे और बीती बातों को याद कर खूब ठहाके लगाएँ। बच्चों को लेकर लांग राइड पर जाएँ और हर वह काम करें जिसको करने में आपने खूब आनंद उठाया था ,मसलन बारिश में नहाना ,गुलेल
मार कर टिकोले तोड़ना ,ठेले पर के
गोलगप्पे खाना आदि । एक बार ठान लें तो खुश रहने के अनेक रास्ते खुद ब खुद निकल आयेंगे।
संकल्पों
का बाज़ार गर्म है। आइये ,हम भी
नए साल में एक ऐसा रिज़ोल्युशन लें जो अब तक नहीं लिया यानि जीवन की अवस्था चाहे जैसी भी हो हम खुश रहने का प्रयत्न करेंगे। जीवन को एक उत्सव मान कर एक - एक पल
को जीयेंगे।खुशियों का सैलाब अपनी चपेट में हमारे दुखों को बहा ले जाए और हम नित नयी उर्ज़ा से भरे रहें।
published in KADAMBINI