फासले क्यूँ हैं...
गुज़र जाते हो हवा की मानिंद पल भर में
ख्वाब बन कभी तो रात में ठहर जाओ
पास होकर भी फासले क्यूँ हैं दरम्यां में
अपनी ही आग में मत यूँ जल जाओ
खुद से भी दूर हो जाती तन्हाई के आलम में
हौले से आकर कभी ज़ेहन में समा जाओ
जीने की आरज़ू है तुम्हारे पहलु में
हर मौसम में खुद को ढाल उतर जाओ
मुद्दतों से बर्फ जमा है दरीचों में
आंच से अपनी कभी तो पिघला जाओ
न चाहा फ़िज़ां और न सुहानी सांझ ही
ख़िज़ां की खामोशी में ही पसर जाओ
लहरों की तरह हम उठते - गिरते रहे
साहिल बन कभी तो गले लगा जाओ
गुज़र जाते हो हवा की मानिंद पल भर में
ख्वाब बन कभी तो रात में ठहर जाओ
पास होकर भी फासले क्यूँ हैं दरम्यां में
अपनी ही आग में मत यूँ जल जाओ
खुद से भी दूर हो जाती तन्हाई के आलम में
हौले से आकर कभी ज़ेहन में समा जाओ
जीने की आरज़ू है तुम्हारे पहलु में
हर मौसम में खुद को ढाल उतर जाओ
मुद्दतों से बर्फ जमा है दरीचों में
आंच से अपनी कभी तो पिघला जाओ
न चाहा फ़िज़ां और न सुहानी सांझ ही
ख़िज़ां की खामोशी में ही पसर जाओ
लहरों की तरह हम उठते - गिरते रहे
साहिल बन कभी तो गले लगा जाओ
लहरों की तरह हम उठते - गिरते रहे
साहिल बन कर गले लग जाओ :)
सुंदरतम !!