इतना ही बरसना मेघ
प्राण - त्राण को मचल रहे जीवक
अपलक निहारते नभ को नीड़क
जलदागम का संदेशा लेकर आयी
द्रुतगति से बह निकली पवन बौराई।
आकुल मेघ ,कभी भिड़ते कभी गरजते
जाने कौन सी बेचैनी उर में छिपाते
ज्यों एक बूँद गिरा ,फिर बूँदों की लड़ियाँ
मन - मयूर खिल उठा ,चहूँ दिशा में खुशियाँ ।
जीवन की डोर थामे, तुम हो प्राण वशिता
कवि हृदय मुखर पड़ता देख तुम सा वर्षिता
कल था हर कोई बेदम ,बेचैन ,विक्लिष्ट
आज दमक रहा ,रूप कर रहा विश्लिष्ट ।
कंकाल सरीखे डाल ,जीवन नया पाते
सूख पड़े थे ताल ,फिर तरुणाई पाते
मृततुल्य थे प्राणी ,तुमने दिलाई आस
इतना ही बरसना मेघ, जितनी है प्यास।
जीवन की डोर थामे, तुम हो प्राण वशिता
कवि हृदय मुखर पड़ता देख तुम सा वर्षिता
कल था हर कोई बेदम ,बेचैन ,विक्लिष्ट
आज दमक रहा ,रूप कर रहा विश्लिष्ट ।
बहुत खूब लिखा है इस रचना के लिए आभार... " सवाई सिंह "
THANK YOU rajpurohitji and shastri bhai
जीवन की डोर थामे, तुम हो प्राण वशिता
कवि हृदय मुखर पड़ता देख तुम सा वर्षिता
कल था हर कोई बेदम ,बेचैन ,विक्लिष्ट
आज दमक रहा ,रूप कर रहा विश्लिष्ट ।
..बहुत सुन्दर सार्थक सन्देश देती रचना ..
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति.