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              बापू 

प्रत्येक राष्ट्रीय पर्वों पर 
तुम्हारे जन्मदिन या स्मृति दिवस पर 
 प्रभातफेरी के बाद तुम्हारी समाधि पर 
फूल - मालाएँ चढ़ेंगी 
सफ़ेद खादीधारी खोखले नेता तुम्हे 
अपना आदर्श बनाने का दावा ठोकेंगे 
और तुम बादलों की ओट से 
खिलखिला पड़ोगे ।
वही निश्छल चिरपरिचित खिलखिलाहट 
जो तुम अपनी तस्वीरों में बिखेरते हो 
वही तस्वीर जो दिखती हैं 
कारागृह में ,न्यायालय में 
विद्यालय हो या वृद्धालय में 
दीवारों पे टंगी तुम्हारी तस्वीर सब देखती है ।
गलत फैसलों पर लूटती किसी की दुनिया 
गीता पर हाथ रख कर 
झूठ बोलने की कवायद 
मर्यादाओं का उल्लंघन करती सामाजिकता 
या फिर बेगुनाहों पर उठती लाठियाँ
बापू ,तुम तो अस्थि-पंजर काया में 
मिसाइल सी ताकत रखते थे 
तुम्हारे आह्वान पर लोग 
खींचे चले आते थे 
मानो वो कठपुतली हों और 
तुम थामे हो उनकी डोर ।
फिर, आज तुम्हारी प्रेरणा 
कहाँ गयी बापू ? 
गाँधी एक प्रसंग बन कर रह गया 
पर ,मुझे पता है 
तुम केवल एक अध्याय नहीं हो 
तुम तो जीने की शैली हो 
सत्याग्रह के लिए बिगुल बजाने वाले 
क्रांति वीर हो ।
आज तुम्हारी ज़रुरत है 
इस समाज , देश  और विश्व को 
तुम्हारे रक्तरंजित शरीर के छींटे 
दूर - दूर तक फैल गए थे 
उन रक्तबीजों  से पनपा गाँधी 
तुम्हारा प्रतिरूप,कब आएगा हमारे बीच 
जो एक आज़ादी की मुहिम छेड़ेगा 
अपनों के विरुद्ध ...
और भारत की मिट्टी में 
उर्जस्वित ज्ञान - विज्ञान 
गांधीमय कर देगा ।

kavita vikas  – (17 January 2013 at 04:03)  

bahut bahut dhanywaad ,shastri bhai

रविकर  – (13 February 2013 at 21:20)  

बढ़िया है-आदरेया ||

रचना दीक्षित  – (23 February 2013 at 21:22)  

बहुत सुंदर और सार्थक कविता. गांधी की प्रासंगिकता को आज के परिपेक्ष्य में देखने का सुंदर प्रयास.

दिगम्बर नासवा  – (24 February 2013 at 23:20)  

अब तो बस उनके नाम को भुनाने वाले ही रह गए हैं ...
काश वो देख पाते ये सब ...

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