यह भी बीत जायेगा
निष्प्राण और निःशक्त टहनियाँ
झेलती हैं साल दर साल गर्मियां।
धरा के विकीर्ण ताप से जलती
विवसन होने का अभिशाप झेलती ।
निराश न होतीं ,जानती हैं क्योंकि
यह दुर्दिन भी बीत जायेगा ।
एक तू ही है अकेला ,नासमझ मन
चाहता है केवल सुख का सघन वन ।
विचरता रहे खुशियों का पकड़ हाथ
आशाओं का दीप जलता रहे साथ ।
मगरूर न हो ,चेत जा क्योंकि
यह सुदिन भी बीत जायेगा ।
सलिला का उमड़ता , उफनता यौवन
दिवामणि को विसर्जित करती मौन ।
कुम्हला कर रहती बस पानी की एक लकीर
पर न रोती ,न कोसती अपनी तकदीर ।
जीवट है बड़ी ,जानती है क्योंकि
यह उत्ताप काल भी बीत जायेगा ।
दुःख का झोंका जब विघात करता
विकल प्राण को जीवन वितथ लगता।
हर उच्छ्वास में समुत्थान खोज जीव
विजीष की आकांक्षा को बना नींव ।
श्रिय ही होगा ,विचेत ना क्योंकि
यह उरस काल भी बीत जायेगा ।
वाह बहुत खूब !
rituji ,dhanywaad..aabhar