जीवन दर्शन
धरती की कोख से फूटता अक्षय अंकुर
मधुमय कोष का प्रतीक ,पर जीवन क्षणभंगुर ।
अथ के साथ रचा इति ,क्या मोह ,क्या विरक्ति
अंतश्चेतना जो प्रदीप्त होता ,क्यूँ पालता कोई आसक्ति ।
विरस पतझड़ से अभिशप्त तरुवर
कर लेता है हरे परिधान का श्रृंगार ।
अजस्र औदार्य से दमकता हर शाख
कातर था कल ,आज भाग्यदशा पर है साख ।
खग का कलरव विदीर्ण करता उषाकालीन नीरवता
ऋत्विज सा कर प्रभाती गान ,जागरण संदेश बिखेरता ।
रात हो चाहे कितनी लम्बी ,सुबहा अवश्य आती
उपज्ञा यह अनंत ऊर्जामयी प्रकृति रोज़ सुनाती।
आसमाँ के ऋद्ध में है भावतुल्य रंगों का समावेश
अंगार बरसाता दिवामणि ,सहलाता रात को ऋछेश।
इस अलौकिक नीलाभ का एक टुकड़ा मेघ बन जाओ
बंज़र न हो धरित्री ,अमृत वर्षिता बन जाओ ।
अंतहीन तृषा के समंदर में डूबता - उतराता जीव
उत्तुंग है ,विच्छिन्न पड़ा ,श्रीहीन होता मानो निर्जीव ।
उपपल दल को देखो ,पंक में उद्भाषित हो रहा उल्लसित
साँसों का ऋण चुका मानव ,कर स्वयं को पल्लवित ।
वाह ...बहुत बढि़या।
बेहतरीन रचना...सुंदर प्रस्तुति..आभार
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दूसरा ब्रम्हाजी मंदिर आसोतरा में जिला बाडमेर राजस्थान में बना हुआ है!
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