मेरा अस्तित्व
आँधियों के वेग से अब डर नहीं लगता
आवेश का हर क्षण इसका प्रतिरूप होता ।
कुछ ने बर्बाद किया ,कुछ से जोड़ा नाता
अमिट आघात उपहार बन मिल जाता ।
पात हूँ डाल से जुदा, पर हवाओं ने हार मानी
उड़ा न पाया साथ अपने, मेरी प्रगल्भता पहचानी ।
बुला रहा हर शाख ,जब न उड़ने न सूखने की ठानी
मुझसे बनता नीड़ है, मेरी अस्मिता सबने पहचानी ।
आज बेरौनक सी लगती ,कल उत्साह जगाती
जज़्बातों के अनगिनत रंगों में तू नहाती ।
ऐ जिंदगी ,पल - पल का लेखा - जोखा तू सजाती
जाने किस रूप में कौन मिल जाए ,खूब बहलाती ।
दुःख की बदली नहीं मैं ,धरती सा अस्तित्व मेरा
नाप सका न कोई सीमाएँ मेरी ,ऐसा व्यक्तित्व मेरा ।
मेरी ख़ामोशी में तूफां है ,उर में बहती प्रेम धारा
आग में तपकर कुंदन बनी ,आँखों में ब्रह्माण्ड सारा ।
खुबसूरत प्रस्तुति |
आभार ||
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
आपकी प्रविष्टी की चर्चा आज शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
thank you Ravikarji and shastriji ,abhar
bahut sundar prastuti
behtarin prastuti shabdon ka napa tula prayog
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।