शरद तुम आ गए
>> Tuesday, 27 December 2011 –
शरद तुम आ गए
लो ,काँस के फूल फिर खिल गए
दिवास्पति ने समेट लिया है ताप
धीरे - धीरे ,शरद तुम आ गए
दिवस संकुचन में दिखती छाप ।
सुखद स्नेहल धूप पर
तन गयी कोहरे की चादर
लम्बी काली गहराती रात पर
ठिठुरन की सौगात कर गयी कातर ।
महलों की पीड़ा तो क्षणभंगुर होती
झोपड़ी पर तुम कहर ढाते ।
दुःख की बदली बेध सुख की किरणें आतीं
परिवर्तन - चक्र यही सन्देश लाते ।
प्रकृति ने तुम्हारा आमंत्रण स्वीकारा
हरीतिमा इर्द - गिर्द लहराने लगी।
कल प्रिय थे ,आज इंतज़ार तुम्हारा
फूलों की डोलियों से सेज सजने लगी ।