इस ब्लॉग से मेरी अनुमति के बिना

कोई भी रचना कहीं पर भी प्रकाशित न करें।

               चुनौती

मानव तुम्हारी कल्पना , बहुत गहरी और प्रशस्त
 उतार लाओ इसे जीवंत ,बन जाओ सशक्त
तोड़कर शिला बना लो पथ ,प्रवाह नदी का मोड़ दो
 फाड़कर हृदय गगन का ,गर्भ धरा का चीर दो ।
आयें विपदा असंख्य ,चाहे मार्ग हो जाएँ अवरुद्ध
 हो न कभी निराश ,तुम हो जीव प्रबुद्ध ।
खड़ा हिमालय दे रहा चुनौती छू  लो मेरे ताज को
तुम वीर , अंजनिपुत्र ,रोक लो हवा के वेग को ।
कहते हैं सबल का साथ सभी देते
 नहीं कोई निर्बल का गुण गाते ।
एक कदम तुम बढाओ मानव ,फासले न रहें शेष
क़ैद हो जाए आकाश मुट्ठी में ,भाग्य न होता विशेष ।
तुम रहो अग्रसर निरंतर ,कर्म को मान आधार
जीव तुम ब्रह्मपुत्र  हो ,शक्ति तुममे अपरंपार।
ठान लो मन में तो ,दशाएँ  नक्षत्र की बदल जाएँ
 देव कहाँ फिर स्वर्ग में ,वो  धरा पर अवतरित हो जाएँ ।

kavita vikas  – (2 April 2012 at 10:00)  

मित्रों, आप की सहुलियत के लिए "चुनौती " नामक काव्य को अपने ब्लॉग पर लगा दिया है ।

प्रतिभा सक्सेना  – (2 April 2012 at 13:22)  

ऊर्जा से परिपूर्ण ,उत्साह जगाती कविता !

Post a Comment

LinkWithin