मेरी दुआएँ
अतीत के सागर से चुनकर लाई मोतियाँ
कुछ मीठे कुछ कड़वे पलों की स्मृतियाँ
बिखेर दिया है घर के कोने - कोने में
चमक रहीं हैं वो मन के सूने आँगन में
बच्चे मेरे दो फूल ,सुरभित करते बगिया मेरी
आदि मेरे दिन का अंत उनसे होती रात मेरी
बचपन की अठखेलियों में रमता था मेरा मन
कालचक्र फिसलता गया रोकूँ कैसे कर जतन
पंख आ गए तब नीड़ में खलबली होने लगी
घर का चौखट लाँघ उड़ने की हड़बड़ी होने लगी ।
अलगाव की पीड़ा को हमने गले लगा लिया
आँखों का नीर चुपचाप ही बह जाने दिया ।
जो होते मायूस लाडले ,कभी जीवन की मंझधार में
थाम लेती कश्ती मैं ,बुलंद हौसला होता पतवार में ।
बिछोह में जाना मोह जाल सचमुच जटिल होता है
आंच न आये कभी तुमपे दिल यही दुआ मांगता है ।
दरख्तों की झुरमुटों में झाँकता भास्कर मेरा मीत
थाम लेता विह्वल मन और बतलाता जीवन रीत ।
भोर का पंथी धुन में मग्न ,झेले कितनी ही भीड़
लौट आता पर शाम को ,श्रांत -क्लांत अपनी ही नीड़ ।
जो होते मायूस लाडले ,कभी जीवन की मंझधार में
थाम लेती कश्ती मैं ,बुलंद हौसला होता पतवार में ।
Behad Sunder Rachna....
पंख आ गए तब नीड़ में खलबली होने लगी
घर का चौखट लाँघ उड़ने की हड़बड़ी होने लगी ।
अलगाव की पीड़ा को हमने गले लगा लिया
आँखों का नीर चुपचाप ही बह जाने दिया ।
जीवन का यथार्थ है ये...........
बहुत सुंदर रचना कविता जी...
बधाई.
सुंदर अभिव्यक्ति !!
दरख्तों की झुरमुटों में झाँकता भास्कर मेरा मीत
थाम लेता विह्वल मन और बतलाता जीवन रीत ।
भोर का पंथी धुन में मग्न ,झेले कितनी ही भीड़
लौट आता पर शाम को ,श्रांत -क्लांत अपनी ही नीड़ ।
.sach tabhi to ghar ghar hota hai jahan tamam dinbhar ke jhamelon ke baad rahat ki sans lete hain ham....
bahut badiya apni se kahani bayan karti sundar prastuti
aabhar ,dhanywad aapke comments bahut mulywan hain
सुंदर अभिव्यक्ति खूबसूरत शब्द प्रवाह
बच्चे मेरे दो फूल ,सुरभित करते बगिया मेरी
आदि मेरे दिन का अंत उनसे होती रात मेरी
बचपन की अठखेलियों में रमता था मेरा मन
कालचक्र फिसलता गया रोकूँ कैसे कर जतन
ये पंक्तियाँ मुझे ज्यादा पसंद आई ईसलिए ईन का उल्लेख किया है।