बदलते रिश्ते
हमराही बन चलते -चलते रिश्ते बदल जाते हैं
जाने कब अज़ीज़ भी अजनबी बन जाते हैं ।
शिकवाओं की फेहरिस्त बनाना हमने छोड़ दिया
दरकती हुई चट्टान को संभालना सीख लिया ।
खिलौनों की कीमत जो कौड़ियों में आँकता है
उसे नहीं पता ,खिलौनों में भी दिल धड़कता है ।
दिल के टूटने की गर आवाज़ होती
वज्रपात की विध्वंशता तब दिखाई देती ।
जीवन के दोराहे पर कोई नहीं साथ मेरे
मेरा साया है सुख - दुःख में साथ मेरे ।
वक़्त की मांग पर वह भी घटता- बढ़ता है
रात घिरते ही साथ छोड़ बेवफा हो जाता है ।
किसका एतबार करूँ फरेबी हैं सब यहाँ
तुम व्यूह रचाते जाओ ,मैं अभिमन्यु यहाँ ।
मेरी इंतहा लेते- लेते फौलाद बना दिया तुमने
ऋणी हूँ कि व्यूह भेदन के योग्य बना दिया तुमने ।
NICE
बहुत सुंदर!!!
सुंदर रचना
पर पठन में मुश्किल हो रही है पंक्तियाँ एक दुसरे पर चढी हुई हैं.
किसका एतबार करूँ फरेबी हैं सब यहाँ
तुम व्यूह रचाते जाओ ,मैं अभिमन्यु यहाँ ।
मेरी इंतहा लेते- लेते फौलाद बना दिया तुमने
ऋणी हूँ कि व्यूह भेदन के योग्य बना दिया तुमने ।
अनुभवों की तपन बहुत कुछ सिखा देती है.
सुंदर भावपूर्ण रचना.