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बदलते रिश्ते


हमराही बन चलते -चलते रिश्ते बदल जाते हैं
जाने कब अज़ीज़  भी अजनबी  बन जाते हैं ।
शिकवाओं की फेहरिस्त बनाना हमने छोड़ दिया
दरकती हुई चट्टान को संभालना सीख लिया ।

खिलौनों की कीमत जो कौड़ियों में आँकता है
उसे नहीं पता ,खिलौनों में भी दिल धड़कता है ।
दिल के टूटने की गर आवाज़ होती
वज्रपात की विध्वंशता तब दिखाई देती ।

जीवन के दोराहे पर कोई नहीं साथ मेरे
 मेरा साया है सुख - दुःख में साथ मेरे ।
वक़्त की मांग पर वह भी घटता- बढ़ता है
 रात घिरते ही साथ छोड़ बेवफा हो जाता है ।

किसका एतबार करूँ फरेबी हैं सब यहाँ
तुम व्यूह रचाते जाओ ,मैं अभिमन्यु यहाँ ।
मेरी इंतहा लेते- लेते  फौलाद बना दिया तुमने
ऋणी हूँ कि व्यूह भेदन के योग्य बना दिया तुमने ।

ANULATA RAJ NAIR  – (13 April 2012 at 10:20)  

बहुत सुंदर!!!

M VERMA  – (15 April 2012 at 05:13)  

सुंदर रचना
पर पठन में मुश्किल हो रही है पंक्तियाँ एक दुसरे पर चढी हुई हैं.

रचना दीक्षित  – (15 April 2012 at 06:57)  

किसका एतबार करूँ फरेबी हैं सब यहाँ
तुम व्यूह रचाते जाओ ,मैं अभिमन्यु यहाँ ।
मेरी इंतहा लेते- लेते फौलाद बना दिया तुमने
ऋणी हूँ कि व्यूह भेदन के योग्य बना दिया तुमने ।

अनुभवों की तपन बहुत कुछ सिखा देती है.

सुंदर भावपूर्ण रचना.

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