जिजीविषा
वसंत का मधुरस टिकता
नहीं
पीयूष सावन का क्षणिक
है
समय का प्रवाह रुकता
नहीं
सुख का सागर भी तनिक है ।
दिवसावसान की रक्तिमा
देखो
जीवन का गूढ़ तत्व
बतलाता है
एक - एक क्षण
पकड़
कर रखो
पर रेत सा मुट्ठी से
फिसल जाता है ।
जिजीविषा बनी रहे चंद
साँसों में
जिंदगी गुजर रही मेरे
सामने से
उन्माद कम न हो देदीप्यमान
आसों में
कुछ और कर गुजर जाऊँ
ज़माने से ।
शुभकामनायें ।।